दिल्ली, भोपाल, शिवपुरी को लेलें या किसी भी और शहर को गाड़ियो से निकलने वाला धुआँ, शहरों में हर दिन एक आम दृश्य है। यह धुआं हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है, फिर चाहे वह हवा प्रदूषण का कारण हो या हमारी श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने का।
प्रदूषण एक गंभीर मुद्दा है जो हमारे समाज के द्वारा अनधेखा किया जाता है। हमारे द्वारा उत्पन्न किए गए प्रदूषण के स्रोतों में से एक है वाहनों से निकलने वाले धुआँ। हालांकि, अधिकांश शहरो में पुलिस केवल उन लोगों का चालान काटती है जो हेलमेट नहीं लगाते हैं, जबकि वाहनों से हवा प्रदूषित होने वाले धुए पर ध्यान नहीं दिया जाता है।
इसके अलावा, अनेक पुरानी गाड़ियां भी जो सही हालत में नहीं हैं, अभी तक सड़कों पर चल रही हैं, और उन गाड़ियों की प्रमाणित पार्टिकुलेट मानक (PUC) जांच नहीं की जाती है। यह मुद्दा हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है।
धुए के प्रदूषण के मामले में, हमारे समाज में जागरूकता बढ़ रही है लेकिन यह चिंता का विषय बनने के बावजूद, यह मामला अपेक्षाकृत नजरअंदाज हो रहा है।
गाड़ियो से हो रहे प्रदूषण से ख़तरा
धुए वाले प्रदूषण का असर हमारे वातावरण, वनस्पति, जीव-जन्तुओं, और लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। यह निरंतर बढ़ते हुए वाहनों के प्रयोग, तकनीकी अभाव, और सज्जन करने की आवश्यकता के कारण होता है। यह विषय गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए, और न्यायाधीशों, सरकारी अधिकारियों, और लोगों के साथी संगठनों को भी इसमें अधिक सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए।
इसके अलावा, पुरानी और निर्धारित मानकों के अनुसार नहीं चल रही गाड़ियों के मामले में भी कार्रवाई की जानी चाहिए।
इसी विषय में जब हमने एक युवा से बात करी तो उसका कहना था की
मैं जब भी बाहर कुछ काम से निकलता हूँ मुझे ख़ासी आने लगती है, एक तो पहले ही इतना प्रदूषण और धूल है उसके बाद कई लोग गाड़ी आगे निकाल लेते हैं जो निरंतर धुआँ छोड़ती हुई जाती है, जिसका धुआँ पूरा चेहरे पर आता है जिससे स्वास्थ को भी ख़तरा है और प्रदूषण को भी और ऐसे लोगो को रोककर कोई कुछ कहता भी नहीं हैं
यश खंडेलवाल
यह एक ऐसा विषय है जिसपर ज़्यादा लोग विचार नहीं करते परंतु यह विषय बहुत गंभीर हैं ।