-अस्थाई पट्टों के नाम पर राजस्व विभाग ने बिकवा डाले तालाब
-स्टेट टाईम के 40 में से अब मात्र 3 तालाब ले रहे हैं आखिरी सांसें
हर साल की यही कहानी है जब गर्मी होती है तो जल संरचनाओं को अतिक्रमण मुक्त कराने और नालों की सफाई से लेकर तालाबों के जीर्णोद्धार का हल्ला पूरे जिले में मचाया जाता है। बैठकें चलती हैं, प्रशासन स्वांग करता है, शासन बजट देता है और एक-दो हफ्ते के लिए तब काम शुरु होता है जब मानसून की तिथि निकट होती है। जैसे ही बौछारें आना शुरु होती हैं वैसे ही जनता भी चुप, प्रशासन भी बैक फुट पर और जल स्त्रोत जस के तस और फिर आगामी ग्रीष्म काल तक के लिए सब दूर खामोशी छा जाती है। पिछले कई दशकों से गर्मियों में यही तमाशा चला आ रहा है। ठीक यही स्थिति पेयजल के मामले में भी देखी जा सकती है। जब जब प्यासी जनता चिल्लाती है और पानी को हाहाकार मचता है तब तब सिंध का ख्याल आता है उसके बाद सब शांत। गर्मियों में जल स्त्रोतों को कब्जा मुक्त कराने के लिए और उनकी साफ सफाई के लिए प्रशासन से लेकर शासन स्तर पर फण्ड आधारित तमाम सारी कवायद की जाती हैं,इस बार तो स्पेशली सीएम स्तर से यह अभियान छेड़ा गया मगर सब चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात की तर्ज पर मामला टांय टांय फिस्स ही दिखाई दे रहा है। कुछ संस्थाओं ने बिना बजट के जन सहयोग से वह कर दिखाया जो सरकारी एजेंसियों के स्तर पर नहीं हो पाया। यहां स्थिति यह है कि जल कुम्भी का रोना तो प्रशासन पिछले दो साल से रो रहा है मगर चांदपाठा झील जो कि पूरी तरह से जल कुम्भी से ढंक चुकी है उसमें से इसके सफाए के प्रति लेश मात्र भी कोई कदम उठाया गया हो ऐसा नजर नहीं आया। यहां का पर्यटन और यहां झील को मिला रामसर साईट का दर्जा इस जल कुम्भी के कारण संकट में है मगर परवाह किसे है।
शहर के मनियर तालाब, भुजरिया तालाब से लेकर सिंधिया ट्रस्ट के बताए जाने वाले जाधव सागर तालाब को चौतरफा अतिक्रमणों ने घेर लिया और इस दौरान फिर से नोटिस नोटिस खेलन के बाद प्रशासन चुप्पी ओढ़ गया है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अगली साल की गर्मी तक गई भैंस पानी में। अन्य विभागों पर रौब गालिब करने वाले राजस्व विभाग में ही इतनी बड़ी पोल है कि राजस्व के अधिकारी कर्मचारी ही यहां शहर और ग्रामों के तालाबों, नालों और अन्य जल भरण संरचनाओं को खत्म करने पर आमादा न रहते तो आज यह विकराल स्थिति बनती ही क्यों। पिछले समय भी शिवपुरी में जल संरक्षण को लेकर प्रशासन के तमाम दावे और प्लान सामने आए, वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर भी नए नए प्रारूप खींचे गए लेकिन नतीजा ढांक के पांत रहा।
हाईकोर्ट के आदेश भी मोथरे, तालाबों को लील गए भूमाफिया-
हकीकत ये है कि स्टेट टाइम में शिवपुरी शहर में 40 से अधिक ताल तलैया थे और कुण्ड और बावड़ी अलग से थे, किन्तु दुर्भाग्यपूर्ण हकीकत यह है कि आज चांदपाठा झील को छोड़ दें तो एक भी तालाब अतिक्रमण मुक्त नही है। चांदपाठा में जल कुम्भी का कब्जा है। यहां के जाधव सागर और भुजरिया तालाब दो ऐसे ताल हैं जो आज भी पानी समाहित करने की स्थिति में हैं मगर इन पर भी बेशुमार कब्जे हो गये हैं। विष्णू मंदिर के पीछे तलैया हुआ करती थी वहां आज कालोनी तनी है, शिवानगर के पास का तालाब गायब है वहां भी कालोनी की बसाहट है। ऐसे उदाहरण चौतरफा बिखरे पड़ हैं। पूर्व में हाई कोर्ट की युगलपीठ ने शिवपुरी की जल भरण संरचनाओं को कब्जे से मुक्त कराने का आदेश बहुत पहले दिया था मगर इस पर अमल नही किया जा रहा।
राजस्व का खेल पट्टों पर दिए तालाब फिर दे डाली बेचने की अनुमति-
तालाबों की तलहटी राजस्व विभाग और सिंचाई विभाग की भूमाफियाओं से मिली भगत के चलते बिकी है। यहां कमल गट्टों और सिंघाड़ा खेती के जो अस्थाई सीजनल पट्टे और परमिशन दी गई कालान्तर में उस रकबे को जमीन दर्शाकर राजस्व ने विक्रय की अनुमतियों का खेल खेल डाला। आज जाधव सागर का रकबा सिकुड़ गया है यहाँ शादीघर तन गए है और भुजरिया तालाब के भराव क्षेत्र में कॉलोनी कट गई है। मनियर तालाब भी प्रशासनिक मशीनरी कब्जा मुक्त नहीं करा पाईं। यह तालाब जस का तस अतिक्रमण से घिरा है। यहाँ इस तालाब के जीर्णोद्धार के नाम पर गत वर्ष पालिका ने आर्थिक घोटाला कर डाला और काम शुरू होने से पहले ही विवादित हो गया। जनप्रतिनिधियो के साथ विडम्बना है कि वे जमीनी हकीकत से परे अधिकारियों के अफलातूनी प्लान पर भरोसा करते है जिसके नतीजे कभी सार्थक नहीं रहे।