-नेताओं के त्याग के बदले सिंधिया ने सत्ता में भरपूर तवज्जो दिलवाई
भारतीय जनता पार्टी में इस समय जो परिस्थितियां हैं, उसके दृष्टिगत सिंधिया समर्थक नेताओं का टिकट संकट में दिखाई दे रहा है। अतीत पर गौर करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ शिवपुरी जिले के करैरा के तत्कालीन विधायक जसमंत जाटव भारतीय जनता पार्टी में चले गए थे और बाद में हुए उपचुनाव में वह अपनी सीट भी नहीं बचा पाए और बुरी तरह पराजित हो गए। पोहरी विधानसभा क्षेत्र से सुरेश रांठखेड़ा ने सिंधिया निष्ठा जताते हुए अपनी सीट से त्यागपत्र दिया और उपचुनाव में वे बाजी मार ले गए। जसमंत जाटव को सिंधिया की बदौलत जहां हार के बावजूद भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त हुआ, वहीं सुरेश राठखेड़ा राज्य मंत्री बनाए गए। आज की परिस्थितियों में देखें तो इन दोनों ही नेताओं का टिकट संकट में फंसा दिखाई दे रहा है।
सूत्रों की मानें तो अब ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने इन समर्थकों की लॉबिंग करने का जोखिम शायद ही उठाएं, क्योंकि पार्टी में उनकी जो पोजीशन है वह इस बात की इजाजत नहीं देती कि वे ग्वालियर चंबल संभाग में चुनावी लिहाज से कमजोर माने जा रहे अपने समर्थकों के टिकट के लिए राजनैतिक तौर पर वीटो का इस्तेमाल करें खासकर जब भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा तबका इसी इंतजार में बैठा है कि सिंधिया कोटे से कितने चेहरों को टिकट मिलते हैं और कितने चेहरे उसमें जीतकर आते हैं। उसके बाद 2024 से पहले यह खेमा सिंधिया के समक्ष कई चुनौतियां पेश कर सकता है। खबर तो यह भी निकल कर सामने आ रही है कोलारस विधानसभा सीट से सिंधिया समर्थक महेंद्र यादव के जबरदस्त विरोध को दृष्टिगत रखते हुए काफी हद तक संभव है कि सिंधिया कोलारस सीट का निर्णय भी पार्टी पर ही छोड़ सकते हैं। करैरा विधानसभा क्षेत्र में पूर्व विधायक रमेश खटीक पार्टी नेतृत्व की पसंद बताए जा रहे हैं वहीं पोहरी विधानसभा में प्रहलाद का नाम अव्वल नंबर पर चल रहा है। कोलारस विधानसभा सीट पर भी निर्णय पार्टी के ऊपर छोडा जा सकता है।
यदि देखा जाए तो सुरेश राठखेड़ा हों अथवा जसमंत जाटव इन्होंने जो कुछ राजनीतिक कुर्बानी सिंधिया के लिए दी उसकी सूद समेत भरपाई ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर से इन्हें हो चुकी है। ऐसे में इनका भी कोई नैतिक दबाव अब टिकट के मामले में सिंधिया पर रहने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आ रही। संभावना यह है कि सिंधिया चुनिंदा सीटों पर ही टिकट के लिए जोर डालेंगे और अपनी मेहनत भी वे उन्हीं सीटों को जिताने के लिए करेंगे ताकि परिणाम सामने आने पर वे पार्टी नेतृत्व को जवाब दे सकें। इन हालातों में जिले के सिंधिया समर्थक नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें साफ देखी जा रही हैं, क्योंकि इन्हें अब राजनीति में गॉडफादर की तलाश है और वर्तमान परिस्थितियों में कोई इन्हें झेल पाने की स्थिति में नजर नही आ रहा।