इस समय कोलारस और शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र की सियासत में भारी असमंजस पूर्ण हलचल दिखाई दे रही है। माना जा रहा है सितम्बर के पहले सप्ताह तक परिदृश्य कुछ हद तक स्पष्ट हो जाएगा।
सूत्रों की माने तो कोलारस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के मौजूदा विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी के टिकट को सिंधिया के तयशुदा विरोध के चलते जहां खतरे में माना जा रहा है, वहीं उनके स्थान पर यदि टिकट दिया जाता है तो वहां भाजपा महेन्द्र यादव अथवा देवेन्द्र जैन में से किसे प्रत्याशी बनाएगी इस पर सबकी अपनी अपनी राय है क्योंकि एक ही परिवार को लगातार वजन देने से विरोध के सुर महेन्द्र और उनके सरपरस्त नेताओं के लिए भी उठने लगे हैं। इसके अलावा यदि देखा जाए तो वीरेन्द्र रघुवंशी भी उन नेताओं में से नहीं हैं जो चुपचाप घर बैठ जाएं, ऐसे में वे टिकट न मिलने पर काँग्रेस की राह पकड़ कर अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र शिवपुरी में चुनावी पैंतरा आजमा सकते हैं। इस समय कोलारस में काँग्रेस पार्टी के पास दो चेहरे हैं और दोनों ही भाजपा से हाल ही काँग्रेस में आए हैं। इनमें बैजनाथ सिंह यादव पूर्व सिंधिया निष्ठ हैं, तो गोटू मूल भाजपा छोड़ कर काँग्रेस में शामिल हुए हैं। दोनों ही टिकट के लिए विकट जोरआजमाईश कर रहे हैं।
इधर शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां काँग्रेस के टिकट तलबगारों की लिस्ट लम्बी है मगर सिंधिया के विरोध के चलते यदि वीरेन्द्र रघुवंशी भाजपा से दामन छिटकते हैं और काँग्रेस में आते हैं तो उनकी इस सीट से दावेदारी इस प्रतीक्षार्थी सूची पर भारी पड़ सकती है। वर्तमान में भाजपा की ओर से मौजूदा विधायक यशोधरा राजे के रहते अब तक धैर्यवर्धन को छोड़कर किसी ने दावेदारी पेश करने की हिम्मत नहीं की है। कुछ हद तक जितेन्द्र जैन गोटू के तेवर बता रहे हैं कि वे काँग्रेस से शिवपुरी में भी दखल देने की मुद्रा में हैं, मगर जिस तरह से उनके राजनैतिक भण्डारे कोलारस में चल रहे हैं उसके चलते उनकी संभावना कोलारस में अधिक है, मगर तब की स्थिति मेंं बैजनाथ पर क्या बीतेगी यह सवाल भी काँग्रेस को खदबदा रहा है क्योकि वहां यादव वोटर्स की अनदेखी आसान नहीं है। शिवपुरी सीट पर प्रत्याशी चयन को लेकर स्थानीय स्तर पर काँग्रेस में कहा यह भी जा रहा है कि महल को यहाँ एक मोहरे की तलाश है जिसके लिए राजधानी स्तर पर गणित तलाशा जा रहा है लेकिन वाकई लडऩे की सामथ्र्य वाला चेहरा मैदान में आता है तो यह गणित गड़बड़ा भी सकता है।कुल मिलाकर इन दोनों सीटों पर सर्वाधिक सरगर्मी है तो सर्वाधिक भ्रम की स्थिति भी यहीं है क्योंकि एक सीट पर लिया गया टिकट का फैसला दोनों सीटों को प्रभावित करने वाला होगा।