सबसे बड़े स्कैम में पुलिस की जांच पर उठने लगे सवाल
पुराने घर और आलीशान बंगले पर देखा जा रहा है स्कैम का मास्टर माईण्ड
बैंक स्कैम की जांच के नाम पर खेल गिरफ्तारी पर मौन पुलिस: कोर बैंकिंग प्रभारी की सांठगांठ से हुआ 80 करोड़ का गोलमाल
शिवपुरी में हुए 83 करोड़ से अधिक के सीसीबी घोटाले में जिला केंद्रीय सहकारी बैंक शिवपुरी की कोलारस ब्रांच सहित शिवपुरी शाखा और जिले की अन्य शाखाओं पर भी जांच की सुई केन्द्रित हुई दो एफआईआर हुई मगर गिरफ्तारी की बात करें तो मुख्य आरोपियों में राकेश पाराशर सहित दो तीन नामजद लोगों को छोड़ कर शेष को पुलिस ने खुला छोड़ दिया है। पुलिस की कार्य प्रणाली पर रह रह का सवाल उठ रहे हैं। यहां इस घोटाले को राकेश पाराशर ने जिस तरह से अंजाम दिया गया है उसके मुख्य किरदार में कोर बैंकिंग सिस्टम प्रभारी प्रभात भार्गव की अहम भूमिका है। सीबीएस प्रभारी की मिली भगत के बिना यह स्कैम होता ही नहीं। मास्टर माइंड प्रभात की सम्पत्ति को न पुलिस टटोल रही न बैंक प्रबंधन ने इस ओर कोई गौर किया। आरोपी प्रभात भार्गव को पुरानी शिवपुरी और फिजिकल के इंद्रानगर हाउसिंग वोर्ड के आलीशान बंगले गाहे बगाहे देखा जा रहा है। इसकी पत्नि के नाम इस आलीशान बंगले को कुर्की की जद में नहीं लिया गया इसके साथ साथ प्रभात ने लाखों को डोनेशन मेडिकल कालेज में भी दिया है, पेट्राल पम्प में भागीदारी के साथ साथ इसके प्राइम लोकेशन पर भूखण्ड भी कार्रवाई से अछूते हैं।
दरअसल पुलिस सीबीएस प्रभारी को पकड़ने की मानसिकता में ही नहीं है।इसकी अर्जित अचल सम्पत्ति पर बैंक के आला अधिकारियों ने अब तक कुर्की जैसी कोई कार्रवाई शुरु तक नहीं की है। ऐसे में यह सम्पत्ति खुर्दबुर्द होना शुरु हो गई है। जब नीचे से ऊपर तक सब मैनेज हो तो आरोपी पुलिस की पकड़ में आएंगे यह सोच भी अब गलत साबित होने लगी है। गौर तलब यह है कि डीआर कोर्ट ने भी सीबीएस प्रभारी प्रभात को हर मामले में दोषी करार दिया है और इसकी सम्पत्ति कुर्की के लिए 19 जनवरी तक का समय दिया था। पुलिस इस मामले में आज दिनांक तक नामजद आरोपी को अरेस्ट नहीं कर पाई है, जो अपने आप में पुलिस की कार्यक्षमता पर सवाल खड़े करने वाला विन्दु है। यहां बता दें कि यह मामला विधानसभा में उठने के बावजूद पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी है।
इसी केस के अन्य नामजद आरोपी लेखापाल त्यागी और हरिवंश की मौजूदगी भी शिवपुरी मेंं बनी हुई है। पुलिस के साथ यह आंख मिचौली किस हद तक कैसे की जा रही है इसकी एक बानगी उस समय देखने में आई जब पुलिस के लिए फरार बताये जा रहे घोटाले के आरोपी प्रभात ने रजिस्ट्रार के यहां बयान भी दर्ज करा दिए। यह स्थिति दर्शाती है कि पुलिस और बैंक प्रबंधन की सांठगांठ इस केस के आरोपियों के साथ बराबर बनी हुई है। पूर्व तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल ने कुछ लोगों पर शुरुआती एफआईआर के बाद मात्र 2000 का ईनाम घोषित किया था मगर उसके बाद तो पुलिस ने इस केस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया है। स्थिति यह है कि लाखों रुपए फंसाए बैठे निर्दोष खातेदार आज एक एक पैसे को बैंक में भटकते फिर रहे हैं मगर किसी को इनकी परवाह नहीं। जहां नामजद मुख्य आरोपियों पर पुलिस मेहरबान है वहीं केस को उलझाने के लिए तमाम नए आरोपी खड़े करने की कवायद जरुर चल रही है। जिस 13 सदस्यीय जांच दल ने उक्त मुख्य आरोपियों के विरुद्ध जांच प्रतिवेदन दिया, उन आरोपियों की गिरफ्तारी और कुर्की से पुलिस और बैंक प्रबंधन का पीछे हटना समझ से परे है। एसडीओपी विजय यादव का तर्क है कि प्रकरण की जांच चल रही है इसमें 50 से अधिक पर एफआईआर तय है। मगर सवाल यह है कि जिन पर केस दर्ज है उनको पकड़ने में पुलिस तंत्र क्यों रुचि नहीं दिखा रहा।
बैंक प्रबंधन ने बैंक में हुए करोड़ों के गबन की रिकवरी के लिए शुरु में हाथ पैर मारना शुरू किया था मगर अब बड़े अधिकारी चुप्पी ओढ़ गए हैं। जिला सहकारी बैंक शिवपुरी की जिले भर की तमाम ब्रांचों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आ रही हैं।कुल मिलाकर यदि फरार आरोपियों को ऐसे ही खुला छोड़ा गया तो इस केस में शेष कुछ भी नहीं बचने वाला रही बात रिकबरी की तो बाहर घूम रहे आरोपियों की सम्पदा पर जब तक शिकं जा नहीं कसा जाता तो वह सम्पदा भी अब खुर्दबुर्द होना तय है।