ऐसा लगा जैसे समूचा विधानसभा चुनाव सोशल मीडिया पर ही लड़ा गया है। यहां शुरुआत से ही हालत यह रहे कि पल पल मेें विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों की सूचियां फायनल होने से पहले ही नित नए नए नाम सामने आना शुरु हो गए थे। कोई भी नाम घण्टे दो घण्टे चलने के बाद स्वत: ही दूसरे नाम सामने आने से रिप्लेस हो जाता था। इससे कई घर बैठे दावेदार बन गए।
सबसे बड़ी बात इन प्रत्याशियों के नामों के साथ कमेंट्स और बहस करने वालों की भी भीड़ दिखाई देने लगती थी। नाम घोषित होने के बाद चुनावी मुद्दे और बहस के अलावा तमाम एडिटेड वीडियो, भ्रामक प्रचार, लोगों की छबि खराब करने से लेकर व्यर्थ के महमा मण्डन तक की सामग्री सोशल साईट पर चौरफा परोसी गई। अफवाहों से लेकर सटीक सूचनाओं का माध्यम भी सोशल मीडिया बना रहा। यहां पैरोडी, वायरल वीडियो आडियो का जखीरा भी इस प्लेटफार्म पर परोसा गया।कुल मिला कर इस बार समाचार माध्यमों से कहीं अधिक बड़ी भूमिका में सोशल मीडिया दिखाई दिया। हालांकि विश्वसनीयता के स्तर पर प्रिंट मीडिया और अधिकृत चैनल्स की अपनी भूमिका सदैव से रही है मगर ज्यादार अवाम सोशल साईट्स से फीडबैक पाती रही।
चुनाव के दौरान यहां सोशल साईट पर बहस का स्तर इस हद तक पहुंचा कि लोग एक दूसरे के विरुद्ध दुश्मनी की हद तक पहुंच कर टिप्पणी करने से नहीं चूकते। खतरनाक खबर आने वाली है…, अब होगा बड़ा धमाका… आज की रात भारी… जैसे जुमले इन दिनों सोशल साईट को गर्माए हुए हैं। यहां यह घमासान इस वार दर्शा रहा है कि अब बड़े चुनावों में सोशल मीडिया प्लेटफार्म की भूमिका बड़ी होने जा रही है।