शिवपुरी सीट: राजे के रुतबे की अनदेखी भाजपा को बन सकती है दिक्कत का सबब

यशोधरा की न के बाद गड़बड़ाए पार्टी के समीकरण
  • चुनावी मनाही के बाद लगातार टिकट पर चिंतन मंथन का दौर जारी, पशोपेश में पार्टी

शिवपुरी विधानसभा सीट पर यशोधरा राजे के चुनाव न लड़ने साथ ही अपना कोई राजनैतिक उत्तराधिकारी न छोड़ने के एलान के बाद भाजपा ने इस सीट पर टिकट को होल्ड पर रख दिया है। बड़ी पशोपेश यह है कि पार्टी किसे उनके विकल्प के तौर पर चुने, यह तय नहीं हो पा रहा, पार्टी के रणनीतिकार असमंजस में हैं।

यशोधरा राजे सिंधिया 1998 से वे चुनाव जीतती आ रही थीं, फिर चाहे दो बार ग्वालियर से सांसद का चुनाव हो अथवा फिर विधायकी के तमाम चुनाव उन्होंने हर चुनाव जीता। 2007 में जब यशोधरा राजे सिंधिया शिवपुरी विधायक सीट छोड कर पार्टी के आदेश पर ग्वालियर गईं तो उसके बाद हुए शिवपुरी सीट के उप चुनाव में भाजपा को यहां से मुंहकी खानी पड़ी। यशोधरा राजे का विकल्प इस सीट पर तब भी नहीं था और आज जब उन्होंने सीट छोडऩे का एलान किया तब भी पार्टी उनके सदृश्य अन्य कोई सशक्त विकल्प को ढूंढने और जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में जुटी है, ऊपर के स्तर पर मंथन के दौर पर दौर चल रहे हैं।

यह सब इसलिए कि कहीं यशोधरा राजे के इस तरह से मुंह मोड़नेसे पार्टी इस सीट को गंवा न दे। यह तय है कि भाजपा को यशोधरा का यह रिक्त स्थान भरना इतना आसान भी नहीं होगा, क्योंकि उनकी मां की विरासत से लेकर खुद उनकी ढाई दशकों की राजनैतिक पारी को आसानी से अनदेखा नहीं किया जा सकता। यशोधरा राजे सिंधिया के शिवपुरी से पीठ फेरने के बाद पार्टी यह सीट जीत पाने में सफल नहीं हो पाई थी, और तब वीरेन्द्र रघुवंशी यहां से चुनाव जीते थे सारे सत्ता समीकरण धरे के धरे रह गए थे।

चुनाव क्षेत्र को गुडबाय के उनके इस फैसले के बाद वे फिर से इस चुनाव में प्रचार में कोई रोल निभाएंगी इसकी सम्भावना कम है क्योंकि स्वास्थ्य कारणों के चलते यह सम्भव नजर नहीं आ रहा ऐसे में पार्टी इस प्रतिष्ठापूर्ण सीट को जीत पाने के लिए क्या कुछ रणनीति अपनाती है यह देखना काबिले गौर होगा। हालांकि एक सम्भावना टिकट घोषणा तक इस बात की बनी हुई है कि जैसा कि उनके समर्थक कह रहे हैं कि शायद यशोधरा मान जाएं और निर्णय पर पुनर्विचार करें मगर इसमें संशय है।

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Aarav Kanha
Aarav Kanha
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