शिवपुरी जिला, जो कभी शांतिपूर्ण जीवन और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता था, आज सहरिया आदिवासियों के लिए यातना केंद्र बनकर रह गया है। यह क्षेत्र अब उन निर्दोष आदिवासियों के लिए नरक जैसा हो गया है, जिन्हें प्रशासन और पुलिस से सुरक्षा मिलने के बजाय उन्हीं से उत्पीड़न और अत्याचार झेलना पड़ रहा है। सहरिया समुदाय, जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर है, अब पुलिस की बर्बरता और असंवेदनशीलता का शिकार हो रहा है।
ताज़ा घटना, जिसमें 8 साल की एक मासूम आदिवासी बच्ची के साथ सार्वजनिक स्थान पर दरिंदगी की गई, प्रशासन की विफलता और पुलिस की लापरवाही की जीवंत मिसाल है। जिस समय इस बच्ची को सबसे अधिक सुरक्षा की आवश्यकता थी, पुलिस का एक भी जवान उस जगह पर मौजूद नहीं था। शिवपुरी के सार्वजनिक स्थल, जो गरीब आदिवासियों के लिए रात गुजारने का एकमात्र विकल्प होते हैं, अब असुरक्षित बन चुके हैं। आर्थिक तंगी के कारण ये लोग खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं, लेकिन जिस पुलिस व्यवस्था पर इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है, वह अन्य कामों में व्यस्त दिखाई देती है—जैसे कि वसूली और दबंगों के साथ मिलीभगत।
शिवपुरी की पुलिस अपराध रोकने में पूरी तरह असफल साबित हो रही है। पुलिस का काम केवल आरोपी को पकड़ना नहीं, बल्कि अपराध को रोकना भी होना चाहिए। लेकिन ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर तक सहरिया आदिवासी समुदाय को दबंगों और पुलिस के दमन का सामना करना पड़ रहा है। पुलिस और प्रशासन की यह दोहरी मार इन मासूम लोगों के लिए जीवन यापन को दुरूह बना रही है। उनके लिए न्याय और सुरक्षा सिर्फ एक सपना बनकर रह गई है, जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें रोज अपमान और यातनाओं का सामना करना पड़ रहा है।कोलारस में वन विभाग के अमले द्वारा आदिवासियों पर लाठियां बरसाना हो, या पिछोर थाने में निरपत आदिवासी का अपमान, यह घटनाएं पुलिस और प्रशासन की अमानवीयता को उजागर करती हैं। खनियाधाना के बुकर्रा इलाके में रामचरण आदिवासी को बेहरमी से पीटने वाला पुलिस अधिकारी आज भी उसी थाने में शान से तैनात है, जबकि पीड़ित न्याय की गुहार लगाता फिर रहा है।
आदिवासी समुदाय का दर्द और उनकी पीड़ा किसी से छिपी नहीं है, लेकिन प्रशासन की आँखों पर पड़े पर्दे और पुलिस की संवेदनहीनता ने उनके लिए न्याय की राह को और भी कठिन बना दिया है। सहरिया क्रांति आंदोलन इस अन्याय के खिलाफ एक उम्मीद की किरण है, लेकिन जब तक पुलिस और प्रशासन का रवैया नहीं बदलता, तब तक आदिवासियों के लिए जीवन एक यातना से कम नहीं होगा।सरकार और प्रशासन को अब यह समझना होगा कि आदिवासी समुदाय को उनके अधिकार और सम्मान दिलाना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है, और पुलिस व्यवस्था को सही दिशा में काम करने के लिए सख्त सुधार की आवश्यकता है।