कुछ विधायक तो कुछ पराजित योद्धाओं पर पेंच फंसा
शिवपुरी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस समय राजनैतिक संकट का सामना कर रहे हैं। उनके साथ काँग्रेस से भाजपा मेंं आने वाले समर्थकों का एक के बाद एक पार्टी छोड़ कर काँग्रेस में वापसी करना जहां उन्हें अपनों के बीच अलग थलग सा अहसास करा रहा है, वहीं भाजपा में भी संगठन इस कदर से एक्टिव फार्म में दिखाई दे रहा है कि इस समय जो सिंधिया समर्थक उनके साथ रह गए हैं उनमें से भी कईयों के टिकट पर कैंची चलती दिखाई दे रही है।
भाजपा के संगठन से जुड़े सूत्रों की माने तो सिंधिया के साथ आए कुछ उनके समर्थकों का टिकट इस चुनाव में कट सकता है। सबसे ज्यादा ग्वालियर चंबल में टिकट कटने का संकट है। गत समय हुए उपचुनाव में शांत रहने वाले बीजेपी के पुराने नेता चुनावोंं के ठीक पहले इस मुद्दे पर मोर्चा खोलने की स्थिति में नजर आने लगे हैं।
इन टिकटों को लेकर पार्टी के सामने भी असमंजस की स्थिति है। एक एक सीट पर पूरे प्रदेश में पार्टी फूंक-फूंक कर टिकटावंटन में एड़ी चोटी का दम झोंक रही है। इन सबके बीच सिंधिया समर्थकों को उपकृत करना पार्टी के लिए आसान नहीं है।
ग्वालियर चंबल इलाके में जिताऊ और टिकाऊ के बीच बिकाऊ भी नापे तौले जा रहे हैं। शिवपुरी जिले में सिंधिया समर्थकों को प्रशासन में दी जा रही तरजीह के कारण भाजपा अपना एक विधायक खो चुकी है। कोलारस से विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने सिंधिया समर्थकों पर कई आरोप लगाए हैं। स्थिति को भांपते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी कुछ समर्थक घर वापसी करने लगे हैं। मतलब काँग्रेस में वापस लौट रहे हैं।
वहीं करैरा विधानसभा सीट से पिछली बार चुनाव हारे जसवंत जाटव के टिकट पर भी उहापोह बरकरार है यहां पार्टी रमेेश खटीक को टिकट के लिए सामने कर सकती है। हालांकि उप चुनाव में जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद सरकार बनवाने में जसमंत के योगदान को देखते हुए पार्टी पहले ही उन्हें उनका इनाम चुनाव हारने के बाद दे चुकी है । सरकार ने उन्हें पशुधन कुक्कट निगम का अध्यक्ष बना दिया है। यह पद उनको मिले दलबदल के पारितोषक के तौर पर मिली उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। इसके बाद उनको टिकट की आस न के बराबर हो जाती है। बीजेपी इस चुनाव में जिताऊ उम्मीदवारों की खोज कर रही है। ऐसे में इस बार इनकी बलि भी ली जाने की चर्चा है।
कोलारस विधानसभा से सिंधिया समर्थक महेन्द्र यादव का टिकट भी अभी पेंच में फँसा है क्योंकि एक ही परिवार को अरसे से सिंधिया द्वारा उपकृत किया जाना खुद उनके लिए भी विरोध की बजह बन रहा है। फिर भी अभी महेन्द्र के चांस 50-50 बने हुए है। सिंधिया समर्थक पोहरी विधायक सुरेश रांठखेड़ा की सर्वे रिपोर्ट उनके लिए दिक्कत का सबब बन रही है, वहीं पंचायत मंत्री महेन्द्र सिंह सिसौदिया के इर्द गिर्द कांट्रोवर्सी क्रिएट होना शुरु हो गई है लेकिन बताया जा रहा है कि सिसौदिया को दोहराया जा सकता है।
गौरतलब है कि इनमें कुछ जहां जीते हुए प्रत्याशी हैं वहीं कुछ उप चुनाव में हारे हैं, जिनकी दावेदारी कमजोर पड़ गई है। इसके साथ ही कुछ समर्थक इनके वापस काँग्रेस में लौट रहे हैं। इससे ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्थिति कमजोर हो रही है। हालांकि टिकट कटने को लेकर पूर्व में सिंधिया बोल चुके हैं। हम सभी बीजेपी के लिए हैं, जो जीतने वाला होगा, उसे टिकट मिलेगा।