हक अधिकार व अत्याचार के विरुद्ध सड़कों पर उतरे सहरिया क्रांति प्रतिनिधि
शिवपुरी। आज सहरिया क्रांति के सैकड़ों सदस्यों ने जिला मुख्यालय पर एकत्रित होकर मुख्यमंत्री के नाम पुलिस अधीक्षक कार्यालय पर ज्ञापन सौंपा। इस ज्ञापन में सहरिया क्रांति प्रतिनिधियों ने ने अपनी समस्याओं का समाधान न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। इसके बाद जिला कलेक्टर को भी सहरिया क्रांति ने समस्याओं से अवगत कराकर शीघ्र निराकरण की माँग की। सहरिया क्रांति संयोजक संजय बेचैन के निवास से कतारवद्द होकर निकले सहरिया क्रांति प्रतिनिधियों ने पहले एसपी कार्यालय पर एडिशनल एसपी को फिर जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि सहरिया क्रांति के प्रतिनिधि मध्यप्रदेश के शिवपुरी, श्योपुर, गुना, और ग्वालियर जिलों में सहरिया आदिवासी समुदाय के साथ हो रहे अन्याय और पुलिस से मिल रही असुविधाओं के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। विभिन्न थानों में आदिवासियों को न्याय प्राप्त करने में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल आदिवासी समुदाय की सुरक्षा और सम्मान के लिए खतरा बन चुकी है, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।
इन बिंदुओं पर दिया ज्ञापन
1. पुलिस थानों में सुनवाई का अभाव: सहरिया आदिवासी समुदाय के लोग जब किसी समस्या या अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस थानों में जाते हैं, तो उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। कई मामलों में पुलिस अधिकारी उनकी फरियाद सुनने के बजाय उन्हें नजरअंदाज करते हैं, जिससे वे न्याय से वंचित रह जाते हैं। विशेषकर महिलाओं और कमजोर वर्गों के प्रति पुलिस का यह रवैया अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।
2. अमानवीय व्यवहार और भेदभाव: सहरिया आदिवासियों के साथ पुलिस थानों में भेदभावपूर्ण और अमानवीय व्यवहार किया जाता है। पुलिस अधिकारी आदिवासी फरियादियों के साथ अपमानजनक भाषा का उपयोग करते हैं और उन्हें डराने-धमकाने का प्रयास करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, पीड़ित व्यक्ति की शिकायत दर्ज करने के बजाय उल्टा उसे ही दोषी ठहराने का प्रयास किया जाता है।
3. शिकायत दर्ज करने में विलंब और अस्वीकार: कई पुलिस थानों में आदिवासी समुदाय की शिकायतों को दर्ज करने में जानबूझकर विलंब किया जाता है, या फिर उन्हें बिना किसी उचित कारण के अस्वीकार कर दिया जाता है। इससे अपराधियों को प्रोत्साहन मिलता है और पीड़ित व्यक्ति न्याय प्राप्त करने में असफल हो जाता है।
4. दबंगों और पूंजीपतियों का प्रभाव: कई थानों में दबंग और पूंजीपति वर्ग का अत्यधिक प्रभाव है, जिसके कारण आदिवासी समुदाय की शिकायतों को अनदेखा किया जाता है। ऐसे मामलों में पुलिस केवल पैसे और प्रभावशाली लोगों के दबाव में काम करती है, जिससे आदिवासी समुदाय की समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता।
5. महिलाओं के साथ अन्याय: आदिवासी महिलाओं के साथ यौन शोषण और हिंसा की घटनाओं में पुलिस द्वारा उनकी शिकायतों को दर्ज नहीं किया जाता है, और उन्हें न्याय से वंचित किया जाता है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और इस पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
6. मगरौनी की अमानवीय घटना: हाल ही में नरवर थाना अंतर्गत पुलिस चौकी मगरौनी में एक बलात्कार पीड़ित विधवा आदिवासी महिला के साथ चौकी प्रभारी जूली तोमर द्वारा जूतों और लात-घूसों से मारपीट की गई, और उसकी नाबालिग बच्ची को भी पीटा गया और धमकाया गया। पुलिस ने महिला से 12 घंटे पूछताछ की और बलात्कार की घटना के साक्ष्य भी हासिल किए, इसके बावजूद उसकी बलात्कार की रिपोर्ट नहीं लिखी गई। इस मामले में साक्ष्य छुपाने व बलात्कार पीड़ित महिला व बच्ची पर अत्याचार के दोषी पुलिस वालों पर तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है।
7. गरीबी का नाजायज फायदा उठाने का प्रयास: दबंग समुदाय के कुछ लोग आदिवासी महिलाओं की गरीबी का नाजायज फायदा उठाकर उन्हें अनैतिक क्रियाकलापों में लिप्त करना चाहते हैं। ऐसे लोगों को चिन्हित कर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
8. देहिक शोषण के बाद दबाव: पूंजीपति वर्ग के कई लोग आदिवासी महिलाओं का देहिक शोषण करते हैं और जब कोई महिला इसकी शिकायत करती है, तो उल्टा पुलिस उसे ही दोषी ठहराने का प्रयास करती है। ऐसे मामलों में निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए और दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।
9. जमीनों पर दबंगों के कब्जे व पुलिस की भूमिका: सहरिया आदिवासियों की 85 प्रतिशत जमीनों पर दबंगों का कब्जा है। जब वे अपनी जमीन पर जाते हैं, तो मारपीट की जाती है, और पुलिस उनकी शिकायतों को नजरअंदाज करती है। पुलिस दबंगों से पैसे लेकर उनकी जमीनों को मुक्त कराने में रुचि नहीं दिखाती।
10. कुटीर बनाने से रोकना: आदिवासियों को सरकारी कुटीर मिली हैं, लेकिन गाँवों की सरकारी भूमि पर दबंगों का कब्जा है। जब वे कुटीर बनाने जाते हैं, तो दबंग उन्हें धमकाते हैं और पुलिस उन्हें झूठी शिकायतों के आधार पर धमकाती है।
11. अवैध शराब दुकानें: गाँवों में पुलिस के सहयोग से अवैध शराब की दुकानों का संचालन हो रहा है। पुलिस और आबकारी विभाग के लोग उनसे हफ्ता लेकर शराब की पेटियाँ रखवा रहे हैं। कई घर इन अवैध शराब की दुकानों के कारण बर्बाद हो गए हैं। सहरिया क्रांति ने इन दुकानों को हटाने की मांग की है।
मांगें:
1. आदिवासी समुदाय की शिकायतों की सुनवाई के लिए एक विशेष समिति का गठन किया जाए।
2. पुलिस थानों में आदिवासी समुदाय के लिए विशेष हेल्प डेस्क स्थापित किए जाएं।
3. पुलिस अधिकारियों को आदिवासी समुदाय के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।
4. मगरौनी चौकी में बलात्कार पीड़ित महिला पर अत्याचार करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए।
5. दबंगों और पूंजीपतियों के प्रभाव से स्वतंत्र पुलिस व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
6. सहरिया आदिवासियों की जमीनों पर दबंगों के कब्जे को समाप्त किया जाए।
7. अवैध शराब की दुकानें गाँवों से हटवाई जाएं।
सहरिया क्रांति ने चेतावनी दी है कि अगर इन मांगों पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया, तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। ज्ञापन की प्रतिलिपि महिला आयोग भारत सरकार, अनुसूचित जनजाति आयोग, पुलिस महानिदेशक भोपाल, पुलिस महानिरीक्षक भोपाल, पुलिस अधीक्षक शिवपुरी, जिला कलेक्टर शिवपुरी के नाम भी दी गई है।