-सिंगरौली कोल प्रोजेक्ट की मार शिवपुरी तक
-भूमि देने में राजस्व और फारेस्ट विभाग की अतिशय तत्परता संदेह के घेरे में
-जहां पहले से ही सघन जंगल, चट्टान और पठार वहां कैसे होगा वृक्षारोपण
खास खबर/संजय बेचैन
कहावत है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं, यही हाल यहां प्रशासनिक तंत्र में दिखाई दे रहा है एक ओर जमीनों की अफरातफरी को लेकर प्रशासन कड़ा रुख बता रहा है दूसरी ओर बड़े स्तर पर जमीनों की अफरातफरी के मामले संज्ञान में होने के बावजूद कोई कार्रवाई यहां धरातल पर नजर नहीं आ रही।एसएमआरपीएल नामक कंपनी अपने माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए सिंगरौली से सीए स्कीम यानी कंपलसरी अफॉरेस्टेशन स्कीम के क्रम में शिवपुरी जिले के बैराड़ और शिवपुरी तहसीलों के ग्राम बूड़दा, इमलीपुरा, बसई रघुनाथपुरा, डोंगरी, झिरन्या झोपड़ी के अंतर्गत 20 हजार बीघा सरकारी जमीन न्यूनतम सरकारी मूल्य पर शासन से मांग रही है। जिसे कथित तौर पर प्रशासन द्वारा स्वीकार भी कर लिया गया है और राजस्व व वन विभाग दनादन अनुमतियों की तैयारी मेंं जुट गए। लेकिन इस प्रकरण को लेकर उठ रहे विरोध के दृष्टिगत अब यह मामला पेचीदा होता जान पड़ रहा है। क्योंकि कम्पनी द्वारा जिस भूमि की मांग की गई है उस भूमि पर पहले से ही सघन जंगल खड़ा हुआ है। ऐसे में यहां नए सिरे से वृक्षारोपण तभी संभव है जब इस जंगल को सिरे से साफ कर दिया जाए तदोपरांत प्लांटेशन किया जाए जिसका कोई तार्किक आधार कहीं से कहीं तक नजर नहीं आ रहा दूसरा जो भूमि इस जंगल के अलावा प्रस्तावित की गई है वह पठार और चटटानी क्षेत्र है जहां प्लांटेशन की सफलता सम्भव नहीं। इस प्रकरण के संबंध में जागरुक नागरिकों ने कलेक्टर शिवपुरी को भी एक लिखित आपत्ति प्रस्तुत की है जिसमें कहा गया है कि एसएमआरपीएल कंपनी को सिंगरौली में धिरौली नामक कोल ब्लॉक आवंटित हुआ, जिसमें लगभग 1436 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित होनी है। सिंगरौली में जिस जमीन पर कोयला का माइनिंग होना है वह घना जंगल है जो 1000 साल से अधिक पुराना बताया जाता है। यह स्थान कोयला खनन में आने के कारण वहां का जंगल पूरी तरह समाप्त हो जाएगा और उस स्थान की जैव विविधता भी पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी। जिसकी भरपाई के लिए कंपनी द्वारा कलेक्टर शिवपुरी को आवेदन कर प्लांटेशन हेतु शासकीय भूमि की मांग की गई है। मजेदार तथ्य यह है कि तहसीलदार बैराड़ और तहसीलदार शिवपुरी द्वारा उक्त कंपनी को भूमि आवंटन का प्रकरण भी तैयार कर लिया गया है। यह तत्परता दर्शाती है कि मामला हाईप्रोफाइल है। राजस्व विभाग द्वारा तैयार किए गए प्रकरण में इस बात का उल्लेख जानबूझकर छुपाने का प्रयास किया गया है कि जिस भूमि की मांग की गई है वहां पहले से ही डेंस फारेस्ट मौजूद है, स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं। शिवपुरी में इस तरह शासकीय गैर वन भूमि को न्यूनतम शासकीय मूल्य पर देने से ना केवल सरकारी लैंड बैंक को नुकसान होगा सरकार को वित्तीय क्षति भी होगी। वर्तमान में यह भूमि स्थानीय लोगों के मवेशी, चारागाह, गांव और जीविका हेतु उपयोग की जाती है। ऐसी स्थिति में राजस्व के अधिकारी भी तमाम तथ्यों को छुपाने को लेकर संदेह के घेरे में आ गए हैं।
जहां पूर्व से हजारों वृक्ष वहां कैसा वृक्षारोपण-
वन विभाग ने राजस्व की भूमि को चिन्हित कर उपयोगिता प्रमाण पत्र की तैयारी की है उसका कुल रकबा वर्तमान में लगभग 8000 बीघा बताया जा रहा है, जहां गणना कराई जाए तो लगभग 800 से अधिक ऐसे वृक्ष की संख्या मात्र 100 गुना 100 के भूभाग में सामने आ रही है जिनका व्यास 20 सेंटीमीटर से अधिक है और सभी वृक्ष 10 साल से अधिक आयु के हैं। ऐसी स्थिति में जहां पेड़ों की संख्या पहले से ही इतनी हो वहां वृक्षारोपण के लिए उपयोगिता प्रमाण पत्र दिया जाना अभी संदेह से परे नहीं है। प्रस्तावित स्थल के गूगल मैप इमेज को देखें तो स्पष्ट रूप से सघन वन दिखाई दे रहा है यानी जंगल में वृक्षारोपण अपने आप में ही चौंकाने वाला तथ्य है। आरोप है कि 3 गांव बूड़दा, इमलीपुरा एवं बसाई के जो पंचनामें तैयार किए गए उन पंचनामों में चिन्हित चेहरे ही पंच हैं, साथ ही जो उक्त संस्था के प्रतिनिधि आवेदन कर रहे हैं वही आवेदक इस पंचनामें में पंच बने हैं। राजस्व विभाग के तहसील बैराड़ द्वारा जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है उसमें स्पष्ट जाहिर होता है कि बिना स्थल परीक्षण किए ही सीधे उपयोगिता प्रमाण पत्र जारी कर दिए गए हैं। वन भूमि जहां पहले से ही बड़ी तादाद में जीवित वृक्ष मौजूद हैं वहां फिर से वृक्षारोपण करने का क्या औचित्य है।-पठार में कैसे होगा प्लांटेशन-
तहसीलदार द्वारा जिस भूमि का उल्लेख किया गया है जो पहले से ही आरक्षित क्षेत्र में आती है शेष भूमि पहाड़ और पठार उल्लेखित है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है राजस्व के अधिकारी मौके पर जाकर भौतिक सत्यापन करते तो जंगल में पेड़ लगाने की अनुमति देने जैसा कोई कदम शायद ना उठाया जाता, इसके अलावा जिन भूमि का तहसीलदार द्वारा उल्लेख अपनी रिपोर्ट 19 सितंबर 2022 में किया गया है वहां वृक्षारोपण की कोई संभावना हो ना होकर केवल पहाड़ और चट्टान हैं, जो रिपोर्ट में पठार के रूप में दर्ज है। पोहरी तहसीलदार की रिपोर्ट में संलग्न पंचनामा ग्राम बूड़दा जो दिनांक 13 सितंबर 2022 में बनाया गया, वह भी सुनियोजित तरीके से तैयार किया गया है, जिसकी प्रमाणिकता जांच की जद में है। इस पूरे मामले में यह तथ्य सामने आ रहा है कि जिस कंपनी को कंपलसरी अफॉरेस्टेशन स्कीम के तहत वृक्षारोपण करना है वह वृक्षारोपण की ओट में खुद का फायदा तलाश रही है और सस्ती एवं शासकीय भूमि हासिल करने के प्रयास में है, जिससे शासन को राजस्व की हानि तो होना तय है ही साथ ही साथ पर्यावरण का भी कुछ भला होता दिखाई नहीं दे रहा। वैकल्पिक वृक्षारोपण के लिए उच्च मृदा गुणवत्ता वाली निजी भूमियों का चयन भी किया जा सकता था जो नहीं किया गया। ऐसे में शासकीय पठार चट्टान और पहाड़ों को चिन्हित करने से यहां वृक्षारोपण के नाम पर यहां कागजीबाड़ा होने की अधिक आशंका अधिक दिखाई दे रही है। वन विभाग बैराड़ के बूड़दा वृक्षारोपण हेतु जो पठारी भूमि वन कक्ष क्रमांक पीएफ 869 से लगी हुई है, उसे उपयोगिता प्रतिवेदन प्रदान किया है वह भी जांच के घेरे में है क्योंकि पठार में वृक्षारोपण की सफलता अपने आप में चौकाने वाला बिंदु है।
इनका कहना है-
यह मामला मेरे संज्ञान में आपके माध्यम से आया है, यह प्रकरण मेरे कार्यकाल से पूर्व का प्रतीत होता है, ऐसे में क्या कुछ स्टेटस है यह सम्बन्धित राजस्व अधिकारियों से पता करते हैं। इसके बाद जो स्थिति सामने आएगी उसके अनुसार यथोचित कार्रवाई पर विचार करेंगे।मोतीलाल अहिरवार
एसडीएम पोहरी