राजनीतिक हलचल…शिवपुरी…

सुर मिलाते मिलाते अलापने लगे कलह राग…

कांग्रेस में नए चेहरों के आगमन के बाद से टिकट की स्पर्धा ने हलचल मचा रखी है। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि जब कुछ अनायास परिवर्तन होता है तो उसे स्वीकारने में समय तो लगता ही है। अब कमला हेरिटेज पर हुई ऐसे ही टिकटार्थियों की बैठक और बैठक के तितर बितर एजेंडे पर गौर करें तो एजेंडा सिर्फ एक था और वह केंद्रत था रघुवंश वालों को टिकट के विरोध पर। लेकिन अपने राम का मानना तो यह है कि जो विरोध के सुर मूल कांग्रेसी उठा रहे थे, यदि उनसे ही पूछ लिया जाए की भइए रघुवंश वाले नहीं तो अब बताओ तुम में से कौन ? तो शायद वे मूल काँग्रेसी भी इस मूल मुद्दे पर एक राय नहीं होने वाले तब भी उनके बीच भी विरोध की यही स्थिति निर्मित होती। इसलिए अपने राम का कहना तो यही है कि टिकट मांग के लिए स्पर्धा में बुराई नहीं लेकिन जब किसी को टिकट तय हो जाए तब जरुर सब एक सुर में राग आलापें अन्यथा गई भैंस पानी में।

नेताजी की गौरव गाथा

कहते हैं प्रेम युद्ध और राजनीति में सब कुछ जायज है तो यहां राजनीति का जो रूप चुनाव के ठीक पहले दिखाई दे रहा है, उसे देखकर तो यही लगता है कि आने वाले समय में घमासान बाद विकट होगा। प्रीतम प्यारे गांव गांव में चौपाल लगाकर डंके की चोट अपनी केस हिस्ट्री छाती ठोक कर बखान करते वायरल हुए हैं। यह खुद पर लगे 65 आपराधिक मामलों को ऐसे बखान कर रहे हैं जैसे कोई मेडल लेकर लौटे हों। वैसे इनके वक्तव्य में अपराध को महिमा मंडित करना कोई नया शगल नहीं, इससे पूर्व भी ये खुद को दयाराम गडरिया और रामबाबू गडरिया जैसे डकैतों का परम मित्र बता चुके हैं। यह गांव के चौपाल में मतदाताओं को यह कहने से भी नहीं चूक रहे कि मैं अब तक पिछोर में करोड़ों खर्च कर चुका हूं। वायरल वीडियो इन दोनों सोशल साइट पर चर्चा का विषय बना हुआ है, इसलिए जिसे सुनना है वह क्लिक करें क्योंकि अपने राम तो सुनाने से रहे।

इलेक्शन बनाम कमीशन

सामान्य तौर पर इलेक्शन कमीशन तो संवैधानिक व्यवस्था का अंग है लेकिन इलेक्शन से पूर्व कमीशन की बढ़ोत्तरी कतई असंवैधानिक है। लेकिन जो यहां चल रहा है उसे अनदेखा भी नहीं किया जा सकता। इन दिनों स्थानीय निकायों में कमीशन के रेट कई गुना हो गए हैं। एक निकाय में तो 10 परसेंट पदाधिकारी का, 5 परसेंट अधिकारी का, 10 परसेंट ऑफि स और 3 प्रतिशत अन्य खर्च खुलेआम कमीशन मांगा जा रहा है।

वह भी एडवांस क्योंकि चुनाव निकट है समस्या विकट है। शायद अफसरों को फण्ड जुटाने के टास्क मिले हैं, अब अफसर फं ड दूसरों को जुटाएगा तो पापी पेट तो उसका भी बेचारा खुद की जुगाड़ भी करेगा। यह रेट एकदम उछाल मार गए हैं। इनको इस इलेक्शन कमीशन की तथा कथा चुनावी मंचों से बखानी जाने का भी डर नहीं क्योंकि ऊपर वाला मेहरबान तो अफ सर पहलवान। रही बात नेताओं की तो उनका दामन तो एरियल की धुलाई से भी झकास है दाग ढूंढ़ते रह जाओगे।

घर छोड़कर न जाओ कही घर न मिलेगा

इन दिनों श्रीमंत समर्थकों की स्थिति ऐसी हो गई है कि इस दौर में यह बेचारे ना तो अपनों में रहे और ना बेगानों में। श्रीमंत को तो केंद्र की राजनीति में मुकाम मिल गया, जो विधायकी छोड़कर उनके साथ आए उन्हें मंत्री पद की मलाई मिल गई लेकिन जो बेचारे फोकटिए कोरे पारे रह गए उन्हें ना पद मिले ना पैसा उनका हाल बेहाल है। इनको न तो अब संगठन झेल रहा और न प्रशासन झेल रहा। इसीलिए किसी ने खूब कहा है घर छोड़कर ना जाओ कही घर न मिलेगा…।

उल्टे बांस बरेली को

जिले की एक विधानसभा सीट पर इन दोनों अलग ही समीकरण बुने जा रहे हैं। इन चुनावी दिनों में लोग समर्थकों को साधते हैं, यहां तो विपक्ष में कड़े कुंदे फि ट किए जा रहे हैं, ताकि कोई ऐसा नूरा पहलवान मिल जाए जिसे आसानी से बिन लड़े चित्त किया जा सके। इसके लिए विपक्ष के सुप्रीमो से लेकर राजा साहब तक संपर्क साधे जा रहे हैं। बजन बढ़ाने गुना से भजन भी टटोले गए हैं। सूत्रों की माने तो मामला फि ट भी हो गया था लेकिन क्षेत्र के अचानक दलबदल से समीकरण ऐसे बदले और नूरा कुश्ती के लिए जो नूरा पहलवान तैयार किये जा रहे थे उनकी जगह जबरा पहलवान आ खड़े हुए। अन्दरखाने की खबर है कि प्रयास अभी जारी हैं, सो आगे आगे देखिए होता है क्या? एक जुमला सभी ने सुना है ऊंचे लोग ऊंची पसंद।

सुनो रे राम कहानी…

चुनावी सीजन है ऐसे में एक से बढ़कर एक नजारे दिखाई देते है। सब अपनी अपनी वैल्यू बढ़ाने में लगे हैं फिर चाहे उस बैल्यू का कोई सेंस हो या फि र न्यू सेंस वैल्यू ही क्यों न हो। लाइमलाइट में आने का प्रयास सब कर रहे हैं ताकि अपने वाले कल में इन्हें विसरा कर म्यूजियम आइटम ना बना दिया जाए। पोहरी वाले पंडित जी खुद को टाइगर बता कर गुर्रा रहे हैं तो पुरानी शिवपुरी वाले रामजी की राम कहानी इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब पठनीय हो रही है। किसी का धैर्य टूटते टूटते फि र जुड़ गया तो कोई खुद ही झाड़ पोंछकर उठ खड़ा हुआ। अनसुनी के मारे यह बेचारे आने वाले कल में क्या कुछ गुल खिलाते हैं यह देखना काबिले गौर होगा, क्योंकि इन सब की अपनी फ्रेंड फॉलोइंग है और सबका अपना तामझाम भी। यदि ये सब नेगेटिव चल पड़े तो कइयों को परेशानी खड़ी कर सकते हैं। कहावत आपने भी सुनी है बिल्ली खाएगी नहीं तो लुढ़का जरूर देगी।

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Aarav Kanha
Aarav Kanha
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