अधिकारियों ने स्वीकारी पोर्टल में गड़बड़ी मनमाने ढंग से घोषित किए अतिशेष

फिर से दुरुस्त किया जाएगा पोर्टल, तब तक प्रक्रिया पर असमंजस

-डीईओ से लेकर संयुक्त संचालक तक ने माना पोर्टल में विसंगतियों से उठा विवाद

शिक्षकों को मध्य सत्र में अतिशेष करार देकर किए जा रहे मनमाने स्थानान्तरणों की प्रक्रिया जबर्दस्त ढंग से विवादों के घेरे में आ गई है। बिना किसी तरह की जानकारी शालाबार शिक्षा पोर्टल पर अपलोड कर किए गए शिक्षकों के थोक बंद तबादलों का असल सच अब सामने आ रहा है, कि यह सब मनमाने ढंग से किया गया। विभाग के आला अधिकारी भी अब स्वीकार रहे हैं कि शिक्षा पोर्टल को ठीक से अपडेट किए बिना किए गए स्थानान्तरणों में पर्याप्त विसंगतियां हुई हैं। इस सम्बंध में भिण्ड डीईओ जहां पहले ही स्वीकार कर चुके हैं वहीं 2 सितम्बर को संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संभाग ग्वालियर दीपक पाण्डे ने भी पत्र क्रमांक स्थापना-3/2024/3755/ दिनांक 2 सितम्बर जारी कर ग्वालियर एवं चम्बल संभाग के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेशित किया है कि अतिशेष सहायक शिक्षक/प्राथमिक शिक्षकों की काऊंसलिंग पूरी हो चुकी है, उक्त काऊंसलिंग में एज्यूकेशन पोर्टल अपडेट न होने से अनेक प्रकार की समस्या उत्पन्न हुई है। ऐसे में सभी अतिशेष उच्च श्रेणी शिक्षक/माध्यमिक शिक्षकों की काऊंसलिंग के लिए सभी विसंगतियों का तत्काल निराकरण करें जिससे काऊंसलिंग के समय किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न न हो। मौजूदा घटनाक्रम और प्रदेश भर में मची अफरातफरी के पीछे आयुक्त लोक शिक्षण की हठधर्मिता ही जिम्मेदार कही जाएगी कि उन्होंने गलत जानकारियों के आधार पर शिक्षकों को जबरन बिना समुचित सुनवाई का अवसर दिए गलत जानकारियों से भरे पोर्टल को आधार बना कर स्थानांतरित करने में जल्दबाजी दिखाई और समूचे प्रदेश में स्कूलों की पढ़ाई को बाधित कर शिक्षकों को इधर से उधर करने की प्रक्रिया को अंजाम दे डाला। अब जबकि खुद संभागीय अधिकारी और जिलों के अफसर इन विसंगतियोंं को स्वीकार कर रहे हैं ऐसे में इससे पूर्व हुई त्रुटिपूर्ण काऊंसलिंग का शिकार शिक्षकों के तबादला आदेशों पर भी रोक लगाई जाना चाहिए। शिवपुरी में उल्टी गंगा बह रही है जहां प्रदेश भर में कर्मचारी संघ इस प्रक्रिया का विरोध कर रहे हैं वहीं शिवपुरी में कतिपय कर्मचारी नेता काऊंसलिंग समितियों का स्वागत करने का उपक्रम कर रहे हैं।

शिक्षा पोर्टल पूरी तरह से गलत जानकारियों से भरा है, इसमें वर्षो पूर्व स्वर्गवासी हो चुके मृतकों को तक अतिशेष बता दिया गया है, तीन शिक्षकीय माध्यमिक शालाओं मेें भी एक अतिशेष बताया गया, जबकि न्यूनतम 3 शिक्षक का प्रावधान है। इसके अलावा जूनियर को सीनियर बता कर तबादले की श्रेणी में ला खड़ा किया गया।

समुचित सुनवाई का मौका तक नहीं-

23 अगस्त को पालिसी जारी हुई 24 से 26 तक अवकाश रहा ऐसे में शिक्षकों को आधिकारिक तौर पर यह भी पता नहीं था कि उनको कहां किस स्थिति में विभाग रख रहा है। इसी बीच एक वर्किंग डे यानि 27 अगस्त को शिक्षकों से दोपहर 2 बजे दावे आपत्ति आमंत्रित कर विभाग ने चौंका दिया। मुख्यालयों से दूरस्थ अंचल में मौजूद शिक्षकों को समझ नहीं आया कि वे कहां से जानकारी जुटाएं और कैसे आपत्ति पेश करने सीमित समय में 100 किमी दूर मुख्यालय पर पहुंचे क्योंंकि दावे आपत्ति सुनवाई के लिए मात्र 2 बजे का समय तय किया गया। यहां स्पष्ट तौर पर प्राकृतिक न्याय सिद्धंात की अनदेखी कर विभाग ने अतिशय मनमानी की है। जिसे न्यायालय के दृष्टिकोण से अहम विन्दु माना जा रहा है। कर्मचारी संघों का कहना है कि अब तक हुई सम्पूर्ण प्रक्रिया दोषपूर्ण सिद्ध होने से इसे अबिलम्ब निरस्त किया जाए। यहां आरटीई के प्रावधानों की गलत व्याख्या का मुद्दा पूरे प्रदेश मेंं उछल रहा है। उदाहरणार्थ यदि कक्षा 6 से कक्षा 8 तक के वे विद्यालय जिनमें छात्र संख्या 141 से एक भी कम है तो उन शालाओं में अध्ययनरत बच्चोंं को विज्ञान के विषय विशेषज्ञ द्वारा कराए जाने वाले शिक्षण से बंचित किया जा रहा है। विज्ञान का पद 141 छात्र संख्या वाली शालाओं में रखा गया है जो बच्चों के बीच शिक्षा के स्तर पर सीधे सीधे भेदभाव की श्रेणी में आता है। साथ ही आरटीई के प्रावधानों की गलत व्याख्या को दर्शाता है जो अधिकारियों ने पद संरचना के समय की है। उन बच्चों का क्या दोष जिनके शालाओं में 140 से कम छात्र संख्या है ऐसे में वे विज्ञान जैसे विषय को गणित के शिक्षक से पढ़ेंगे और 141 छात्र संख्या वाले शाला के बच्चों को गणित और विज्ञान के प्रथक प्रथक शिक्षक होंगे। यह संवैधानिक प्रावधानों की खुली अनदेखी है जिसमें समानता का अधिकार वर्णित है।अभिभाषक राजीव शर्मा का कहना है कि आरटीई के अनुसार सभी विषय सभी छात्रों को समान रुप से पढ़ाए जाना अवधारित है मगर नौकरशाही और शिक्षा विभाग ने इसे अपने तई परिभाषित किया है, और इसमें ओट आरटीई कानून की ली है। जबकि आरटीई में ऐसा कहीं वर्णित नहीं कि गणित का शिक्षक विज्ञान पढ़ाऐगा।

कुल मिला कर अब पेंच इस कदर फंस चुका है कि विभाग के अधिकारी खुद सार्वजनिक तौर पर विसंगतियोंं को सामने रख अपने हाथ बचाने की स्थिति में विभिन्न संभागों और जिलों में दिखाई दे रहे हैं। असमंजसपूर्ण हालातों के बीच क्या कुछ होगा यह अभी भविष्य के गर्त में है।

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Rahil Sharma
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