लावारिस शहर: न यातायात पर ध्यान न नियम विरुद्ध तलघरों पर गौर, ट्रैफिक त्रासदी गहराई

यातायात व्यवस्था भंग, तलघरों में सजे बाजार

-बेसमेंट बाजारों, पार्को और अस्पतालों के बाहर सड़कों पर पार्किंग से घमासान
-हाथ ठेलों और सड़कोंं पर चल रहे आटो स्टेण्ड्स से लोगों का चलना दूभर

-वसूली प्रथा ने बिगाड़े हालात,बायपास पर तैनाती समझ से परे

शिवपुरी शहर की यातायात व्यवस्था और यहां की पार्किंग व्यवस्था पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गई है। सड़कों पर वाहनों की पार्किंग और हाथ ठेलों की रेलमपेल में बड़ा ही बिद्रूप नजारा खड़ा कर रखा है। ट्रैफिक पुलिस को नाकों पर पहरेदारी से फुर्सत नहीं जबकि शहर के भीतर यातायात व्यवस्था चारों खाने चित्त दिखाई दे रही है। शहर के बाजारों में जितने भी तलघर आधारित मार्केट्स या होटल अस्पताल आदि हैं वहां सारे वाहन बीच सड़क पर पार्क हो रहे हैं और स्थिति यह है कि लोगों को चलने के लिए भी सड़कों पर स्थान नहीं मिल पा रहा। यह दुरावस्था न पालिका को नजर आती और न यातायात पुलिस ही इस त्रासदी पर गौर करना उचित समझती नतीजतन यहां हर तरफ आपधापीपूर्ण स्थिति देखी जा सकती है।

तलघरों से नोचातूपी में जुटी नपा इसलिए नहीं देती ध्यान-

शहर में तलघरों में बाजार सजे हैं और सड़कों पर मारामारी का आलम है क्योंकि शॉपिंग कॉम्प्लेक्सों में जो पार्किंग व्यवस्था होना चाहिए उन तलघरों में दुकान और संस्थान चल रहे हैं पार्किंग सड़कों पर दिखाई दे रही है। गौर करें कोर्ट रोड स्थित मित्तल कॉम्प्लेक्स में पूरा बाजार भूमिगत चल रहा है जबकि इसे कलेक्टर जान किंग्सली के कार्यकाल में खुद नपा अवैध करार दे चुकी है। यहां आने वाले ग्राहकों के वाहनों से कोर्ट रोड पर स्थाई यातायात अवरुद्घ बना रहता है। नगर पालिका शहर के 62 तलघरों को वर्षों पूर्व नोटिस जारी कर चुकी मगर फिर वसूली का खेल खेल कर ये नोटिस दबा लिए गए। सब कुछ प्रशासन की नजरों के सामने है तो फिर कार्रवाई पर मौन कैसा?

इसी प्रकार से शहर में वर्षों से तने वीआर टॉवर के अवैध तलघर को प्रशासन टस से मस नहीं कर पाया इसके पीछे के कारण की जब बात चलती है तो सबको सांप सूंघ जाता है। इस प्रकरण में नपा से लेकर तमाम एजेंसियों पर इसके अवैध होने के पुख्ता प्रमाण मौजूद हैं मगर कार्यवाही अब तक सिफर है। और तो और यहां सरकारी गली को कब्जाने का आरोप भी जांच में प्रमाणित होने के बावजूद कोई कार्यवाही होती दिखाई नहीं दे रही। यह इकलौता अवैध तजलघर आधारित भवन हो ऐसा कदापि नहीं, बल्कि यहां करीब 70 से अधिक तलघर आधारित भवन ऐसे हैं जो निर्माण स्वीकृति की शर्तों और दी गई अनुमति के विपरीत बनाए गए हैं। इन तलघरों में से अधिकांश में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं जबकि पार्किंग की बात करें तो पार्किंग के तौर पर सार्वजनिक मार्गों को इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रशासन इस पर कार्यवाही कर सकता है मगर कार्यवाही के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति की जरुरत होती है जो यहां दिखाई नहीं दे रही।-सड़कों पर चलती दुकानें बनी यातायात की कमाई का जरिया-

शहर में जहां जहां भी फुटपाथों पर नियम विरुद्ध दुकानें सजी हैं या फिर बैंक और व्यावसायिक कॉम्प्लेक्सों के बाहर पार्किंग दिखाई दे रही है अथवा फिर ट्रांसपोर्टर्स के यहां भारी वाहन लोडिंग अनलोड़िग हो रहे हैं वह सब यूं ही नहीं है बल्कि हाथ ठेलों को भी तब खड़ा होने दिया जा रहा है जब उनसे उगाही कर ली जाती है। शहर की ट्रेफिक व्यवस्था को घुन लग चुका है बाजार में बेतरतीबी से खड़े आटो वाहनों से लेकर हाथ ठेलों और दुकानों को यह शह या छूट मोटी राशि के बदले में मिल रही है। शहर के भीतर व्यवस्था को पलीता लगा कर नाकों पर मुस्तैदी दिखाने के निहितार्थ भी सहज समझ आते हैं। माधव चौक चौराहा, सब्जी मण्डी झांसी तिराहा से लेकर बस स्टेण्ड क्षेत्र ये वे प्वाइंट्स हैं जहां कम से कम पुलिस की तैनाती जरुरी है मगर इन संवदेनशील प्वाइंट्स पर पुलिस कहीं से कहीं तक नजर नहीं आती। सवाल यह कि आखिर व्यवस्था बने तो कैसे। शहर में पार्किंग स्पेस चिन्हित करने का काम पालिका का है मगर पालिका को अपने ही गोरखधंधे से फुर्सत नहीं। यातायात समिति की बैठकों में अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों की गप्प गोष्ठियों की बात करें तो शहर हित में इनका कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आया है। ये केवल अखबारों की सुर्खियां बन कर खत्म हो जाया करती हैं। शहर की सबसे बड़ी समस्या बढ़ती आबादी और सिकुड़ती सड़कें हैं मगर इस पर किसी का गौर नहीं। जब तक राजस्व,पुलिस और पालिका समन्वित मुहिम नहीं चलाते तब तक इस त्रासदी को भोगना यहां की जनता की नियति कही जा सकती है।

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Rahil Sharma
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