- -जनपद से लेकर विधायक और सांसद तक चंद परिवारों में सिमटी सियासत
- -कॉंग्रेस हो या भाजपा इस भाई भतीजावाद से कोई नहीं अछूता
- -आम लीडरशिप पनपने में बाधक बना रहा परिवारवाद
एक तरफ राजनैतिक दल परिवारवाद की राजनीति की खिलाफत में तमाम जुमले गढ़ते नहीं अघाते लेकिन दूसरी ओर परिवारवाद को यहां प्रश्रय भी राजनैतिक दलों द्वारा दिया जाता रहा है।शिवपुरी जिले की बात करें तो चंद परिवारों के राजनैतिक रसूख से यह क्षेत्र कभी अछूता नहीं रहा। राजनैतिक तौर पर यहां आजादी के बाद से सिंधिया परिवार का वर्चस्व रहा। पार्टी कोई भी रही हो मगर उम्मीदवार वहीं जीता जिस पर महल का बरदहस्त रहा। यह श्रृंखला गत लोक सभा चुनाव में 2019 तब टूटी जब ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा उम्मीदवार केपी यादव से चुनाव हारे और आज स्थिति यह बनी कि सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कॉंग्रेस सिंधिया विहीन हो गई है। भाजपा में जाते ही सिंधिया केन्द्रीय मंत्री बनाए गए हैं, वहीं उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया लगातार शिवपुरी से विधायक हैं, उन्होंने अपनी मां कै विजयाराजे सिंधिया की विरासत को संभाला, वे ग्वालियर की सांसद भी रहीं और केबिनेट मंत्री का ओहदा आज भी उनके पास है। अब भाजपा में सिंधिया परिवार का वर्चस्व भले ही बढ़ा हो मगर कॉंग्रेस में यह स्थिति सिंधिया के पार्टी छोडऩे के बाद से खत्म हो गई है। सांसद के स्तर पर पहली बार कोई सिंधिया के विरुद्ध लड़कर 2019 में पहुंच पाया तो वह थे केपी यादव।
कोलारस
अन्य नेताओं की बात परिवारवाद के परिप्रेक्ष्य में करें तो कोलारस विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक रहे स्व रामसिंह यादव को कॉंग्रेस शासन काल में जिला काँग्रेस अध्यक्ष, जिला पंचायत अध्यक्ष, से लेकर विधायक तक से नवासा। उनके निधन के बाद स्थिति यह बनी कि उनके पुत्र महेन्द्र यादव को कॉंग्रेस ने कोलारस से विधानसभा का टिकट दिया और वे विधायक भी बने अगली बार फिर से उन्हें काँग्रेस ने टिकट दिया वे चुनाव हार गए और जिस काँग्रेस के बूते उन्हे पहचान मिली उसे छोड़ कर वे भाजपा में चले गए। अब इसी परिवार की तीसरी पीढ़ी की बात करें तो महेन्द्र यादव की पुत्री को भाजपा ने जिला पंचायत अध्यक्ष का उम्मीदवार बनाया जो चुनाव जीतीं, महेन्द्र यादव की बहन मुनियां जनपद अध्यक्ष रहीं, और अब जब फिर से कोलारस विधानसभा से टिकट की बात चली तो महेन्द्र यादव इस दावेदारी में सिंधिया की पहली पसंद बताए जा रहे हैं। जाहिर सी बात है कि एक ही परिवार के इर्दगिर्द कोलारस में सिंधिया की राजनीति टिकी हुई है।
अब देखें इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे ओमप्रकाश खटीक को तो उन्हें भाजपा से टिकट मिली, तीन बार वे विधायक रहे। विधायक रहते उनके पुत्र गगन खटीक को शिवपुरी से जनपद अध्यक्ष बनाया गया, करैरा सुरक्षित सीट हुई तो वहां से उनके बड़े पुत्र राजकुमार खटीक को भाजपा ने टिकट दिया। पिता और फिर पुत्र तो कहीं बहू इस परिवार से भाजपा द्वारा उपकृत होते रहे हैं। अब जबकि कोलारस सीट अनारक्षित है तो भी पूर्व विधायक ओमप्रकाश खटीक के पक्ष में दीवारें रंगी दिखाई दे रही हैं।
परिवार वाद का एक और उदाहरण यहीं कोलारस विधानसभा और शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में जैन बंधुओं का देखा जा सकता है जिसमें देवेन्द्र जैन पत्तेवालों को भाजपा ने पहले शिवपुरी से टिकट दिया वे जीते और विधायक बने, पार्टी के अहम पदों पर रहे और फिर कोलारस से भी उन्हें पार्टी ने टिकट दिया जिसमें वे जीते और विधायक बने, फिर से टिकट मिला और वे पराजित हुए, उनकी धर्म पत्नि भी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ीं, देवेन्द्र जैन भाजपा से एक बार फिर से टिकट के दावेदार बताए जा रहे हैं। उनके छोटे भाई जितेन्द्र जैन गोटू भाजपा द्वारा जिला पंचायत अध्यक्ष बनाए गए पार्टी के पदों पर भी रहे और वर्तमान परिस्थिति में वे भाजपा को छोड़ कर काँग्रेस में जा मिले और इस समय कांग्रेस से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे है। यानि एक भाई काँग्रेस से दूसरा उसी विधानसभा से भाजपा से टिकट की दौड़ में है।
कोलारस विधानसभा सीट से बैजनाथ सिंह यादव के परिवार का उदाहरण भी सामने है। जिन्हें काँग्रेस जिला अध्यक्ष बनाया गया, उनकी धर्मपत्नि कमला बैजनाथ यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया गया, काँग्रेस छोड़ी तो भाजपा में जा मिले उनको वहां भाजपा ने प्रदेश कार्यसमिति में बिठाया, उनके पुत्र रामवीर यादव भी जनपद अध्यक्षी पर काबिज रहे। अब बैजनाथ सिंह भाजपा छोड़ काँग्रेस में आ मिले और वे अब कोलारस से टिकट के प्रबल दावेदारों में गिने जा रहे हैं।
पोहरी
नरेन्द्र बिरथरे को भाजपा ने पोहरी से प्रत्याशी बनाया। वे चुनाव जीते फिर उन्हे टिकट मिला मगर चुनाव हार गए, उन्होंने दल छोड़ा जन शक्ति से चुनाव लड़े और हारे इसके बाद फिर से भाजपा ने उन्हें न केवल संगठन में पद दिया बल्कि उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा देकर बिठाया, इस बार वे खुद को पोहरी से टिकट का दावेदार बताते हुए पार्टी नेतृत्व के सम्मुख टिकट के लिए शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। इधर उनके भतीजे सोनू प्रमेन्द्र बिरथरे भी भाजपा की राजनीति से जनपद अध्यक्ष बने, युवा मोर्चा के अध्यक्ष रहे और वर्तमान में वे भी पोहरी विधानसभा सीट से अपने चाचा नरेन्द्र बिरथरे के समकक्ष भाजपा से टिकट की कतार में हैं बल्कि सशक्त दावेदारों में उनका नाम है। पोहरी से ही देखें तो भाजपा के पूर्व विधायक स्व जगदीश वर्मा तीन बार विधायक रहे एक बार वे कोलारस से तो दो बार पोहरी से विधायक रहे। इसके उपरांत उनके सगे भतीजे प्रह्लाद भारती को भाजपा ने विधायक का टिकट दिया और वे चुनाव जीते, फिर से टिकट दिया और वे जीते मगर तीसरी बार उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें हार कर भी राज्य मंत्री का दर्जा प्रदान कर विधायक से बढ़कर पोजीशन दी, आज फिर इसी परिवार के इर्दगिर्द भाजपा घूम रही है वे फिर से पोहरी से भाजपा के टिकट के सशक्त दावेदारों में शामिल हैं। पोहरी से विधायक रहे हरिबल्लभ शुक्ला की बात करें तो ऐसा कोई दल नहीं जिसमें उन्होंने एण्ट्री नहीं की हो, उनकी राजनीति भी परिवार में ही केन्द्रित रही उनके भाई रंजीत शुक्ला चुनाव लड़े,तो छोटे भाई जगदीश शुक्ला शिवपुरी से मण्डी अध्यक्ष रहे। अब हरिवल्लभ शुक्ला अपने पुत्र आलोक शुक्ला के लिए टिकट की मांग कॉंग्रेस से कर रहे हैं।
परिवारवाद के वट वृक्ष के नीचे यहां की राजनीति में आम आदमी या पार्टी कार्यकर्ता अब तक ज्यादा सफल नहीं हो पाए जो हुए उनकी गिनती गिने चुनों में ही है।