- भीड़ के बाद भी व्यवस्थाएं ऐसी की सभी ने की सराहना
शिवपुरी खुशबुओं से सराबोर माहौल में शिवपुरी जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर पंडोरा गांव में स्थित गुरुद्वारा भाई बालाजी संधू में होला महल्ला उत्सव की धूम मची हुई है। यूं तो पंडोरा गुरुद्वारा में होला महल्ला बीते कई वर्षों से निर्वाध रूप से मनाया जाता है लेकिन इस बार पिछले सभी बर्षों की अपेक्षा ऐतिहासिक 2 से ढाई लाख लोगों ने 3 दिवसीय होला महल्ला में सिरकत की । गुरुद्वारा प्रांगण में होला मोहल्ला उत्सव में सिख समाज संतों की वाणी सुनकर सिख श्रद्धालुओं ने धर्म लाभ लिया। तीन दिवसीय होला मोहल्ला में अनेक धार्मिक आयोजन तो गुरुद्वारा प्रांगण में चल ही रहे हैं साथ ही आसपास के व्यापारियों के अलावा पंजाब से आए व्यापारियों ने भी यहां अपनी दुकान सजाई हैं । जिन पर दिन भर खरीदारों की भीड़ लगी हुई है। गुरुद्वारा भाई बालाजी संधू के मुखी सचखंड वासी श्रीमान संत बाबा तारा सिंघ जी और दूसरे मुखी श्रीमान संत बाबा चरण सिंघ जी रहे हैं । स्थानीय प्रशासन ने भी गुरुद्वारा में हो रहे आयोजन के लिए अमला तैनात किया है ताकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई तकलीफ ना हो।

24 मार्च से शुरू हुए होला मोहल्ला मैं 24 मार्च को जत्थेदार बाबा बलविंदर सिंह जी शहीद एवं जत्थेदार लक्खा सिंह जी की याद में भोग श्री अखंड पाठ साहिब प्रात 9.15 पर प्रारम्भ हुआ उसके उपरांत होला महल्ला 11.15 बजे प्रारम्भ हुआ । 24 मार्च को सुबह से ही गुरुद्वारा में सिख संगत का पहुँचना प्रारम्भ हो गया था , गुरुद्वारा में संत बाबा हाकम सिंघ जी स्वयं पूरे आयोजन की व्यवस्थाएं देख रहे थे ।मेले में दर्जनों व्यापारियों ने अपनी दुकाने लगाई थीं जिन पर काफी भीड़ रही ।

अगले दिन 25 मार्च को प्रात: से ही शिवपुरी ही नहीं बल्कि अशोकनगर ,गुना, श्योपुर ,भिंड ,ग्वालियर, दतिया आदि जिलों से भी सिख समाज के लोग गुरुद्वारा पहुंचे व होला महल्ला में सम्मलित हुये । यहाँ दीवान सजा व महान जत्थे गुरु साहिबान का इतिहास सुनाकर संगत को निहाल करते रहे । रात्री 7 बजकर 35 मिनिट पर आकाश रोशनाई से नहा गया , रंग बिरंगी आतिशबाज़ी लगबहग 2 घंटे तक चली जिसे लोगों ने नैनों मे कैद कर आनंद लिया । आतिशवाजी का नजारा देखने हाइवे पर चल रहे वाहनों के पहिये थम गए और लोग आतिशबाज़ी का नजारा देखकर रोमांचित होते रहे । पूरे दिन भर रागी व संतों के प्रवचन चलते रहे वहीं वहीं गुरु का लंगर अटूट बंटा । लंगर की व्यवस्थाएं सेंकड़ों युवाओं ने संभाल रखी थी ।

यहाँ आने वाली संगत की कुछ युवाओं ने चप्पल अपने हाथों से सुरक्षित रखने की सेवा संभाल रखी थी तो महिलाएं लंगर चख रहे लोगों की थालियाँ माजकार सेवा कार्य कर रही थीं ।संत बाबा हाकम सिंह जी बताते हैं कि होला मोहल्ला पर्व की शुरुआत से पहले होली के दिन एक-दूसरे पर फूल और फूल से बने रंग डालने की परंपरा थी लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसे शौर्य के साथ जोड़ते हुए सिख कौम को सैन्य प्रशिक्षण करने का आदेश दिया। समुदाय को दो दलों में बांटकर एक-दूसरे के साथ युद्ध करने की सीख दी।

इसमें विशेष रूप से उनकी लाडली फौज यानि निहंग को शामिल किया गया, जो पैदल और घुड़सवारी करते हुए शस्त्रों को चलाने का अभ्यास करते थे। इस तरह तब से लेकर आज तक होला मोहल्ला के पावन पर्व पर अबीर और गुलाल के बीच आपको इसी शूरता और वीरता का रंग देखने को मिलता है। इस दौरान जो बोले सो निहाल और झूल दे निशान कौम दे के जयकारे गूंजते रहते हैं। अभी मेला में आयोजनों की श्रंखला जारी है , यहाँ संगत का आना लगातार जारी है ।
