- काँग्रेस से बैजनाथ और भाजपा से महेन्द्र के बीच यादवी संघर्ष के चांस
- 4 माह की जी तोड़ मेहनत के बाद पत्तेवालों का पत्ता साफ होने की आशंका
विधानसभा चुनाव 2023 का रण रोचक होता दिखाई दे रहा है। यहां हर तरफ घमासान है। जिले की कोलारस विधानसभा सीट पर इस समय के हालातों के मद्देनजर त्रिकोणीय संघर्ष के हालात भी बन सकते हैं। आधिकारिक रूप से दोनों ही पार्टियों द्वारा प्रत्याशी घोषणा से ठीक पहले कोलारस के रण में समीकरण उलट पलट होते दिखाई दे रहे हैं। यहां अभी भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस दोनों ही दलों की ओर से प्रत्याशी घोषणा नहीं हुई है, दोनों ही पार्टियों ने टिकट होल्ड पर रखे हुए हैं, लेकिन जो संकेत दिखाई दे रहे हैं उनको देखते हुए काँग्रेस से बैजनाथ सिंह यादव और भारतीय जनता पार्टी से महेंद्र सिंह यादव के बीच मुकाबला आमने.सामने का होने की स्थिति बन सकती है। यदि ऐसा हुआ तो चुनाव मेें यादवी संघर्ष बड़ा दिलचस्प होगा, और संभवत: पहली बार ऐसी स्थिति निर्मित होगी।
अब बात करें स्थानीय समीकरणों की तो पिछले तीन चार माह से चुनावी फील्डिंग में जुटे रहकर भोग भण्डारा से लेकर गांव गांव, घर घर दस्तक दे देकर अपनी पूरी ताकत झोंकने वाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जितेंद्र जैन पत्तेवाले गोटू खासे विचलित हो सकते हैं। गोटू ने अपना राजनैतिक कैरियर ही इस चुनाव के खातिर दांव पर लगा दिया और भाजपा छोड़कर काँग्रेस सिर्फ इसी गरज से ज्वाईन की कि कोलारस से उन्हें टिकट मिलेगा, मगर ऐन समय पर काँग्रेस गोटू को कोलारस से अब यदि ना करती है, जैसे कि 2 अक्टूबर को कथित संकेत मिल चुके हैं, तो जितेन्द्र जैन गोटू चुप बैठेंगे, इसकी सम्भावना कम ही दिखाई दे रही है।दरअसल जितेन्द्र जैन के समर्थक उन्हें कोलारस से चुनाव लड़ाने के फुल मूड मेें हैं फिर चाहे पार्टी कोई भी क्यों न हो, यह दल मायने नहीं रखता। कहावत है ओखली में सिर दिया तो मूसल से डर कैसा, यानि तमाशा तो अब घुसकर ही देखेंगे, नतीजा कुछ भी क्यों न हो।
सूत्रों की माने तो जितेन्द्र जैन गोटू ऐसी स्थिति में बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम सकते हैं। हालांकि वे फिलहाल चुप्पी साधे हुए वेट एण्ड वॉच की स्थिति में हैं। टिकट घोषणा में पत्ता कटने पर उनकी नाराजगी काँग्रेस के प्रति उभर कर साफ सामने आ सकती है क्योंकि उन्होंने काँग्रेस नेतृत्व द्वारा सर्वे के आधार पर टिकट का भरोसा दिलाया था, इसी के चलते उन्होंने भाजपा का दामन छोड़ा, और काँग्रेस का हाथ पकड़ा मगर अब उनके हिस्से निराशा ही लगती दिखाई दे रही है। बताया जाता है कि वे चुनाव लडऩे की पूरी मानसिकता मेें है और ऐसे में समर्थकों के दबाव की ओट लेकर यदि वे हाथी पर बैठ कर हुंकारा भरें तो अचम्भा नहीं होगा। कोलारस में कास्ट फैक्टर इतना प्रभावी होता तो पूर्व मेें मात्र 5000 वैश्य मतदाताओं के साथ देवेन्द्र जैन पत्तेवाले कभी विधायक नहीं बन पाते,इसी प्रकार से बेहद कम संख्या में रघुवंशी बिरादरी के मतदाताओं के बावजूद वीरेन्द्र रघुवंशी कोलारस विधायक नहीं बन पाते। जाहिर सी बात है कि दो यादवों के आमने सामने होने की स्थिति में वोटर्स तीसरे विकल्प पर भी अपनी रुझान दिखा सकता है।
कांग्रेस के साथ भाजपा को दिक्कत दे सकता है हाथी
बसपा शिवपुरी से अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी है रह गई कोलारस सीट, तो यहां इस द्वंद के दृष्टिगत बसपा टिकट घोषणा की जल्दबाजी में नहीं है। हाथी दो समान जातिगत उम्मीदवारों के बीच क्या कुछ चाल दिखाएगा और परिणाम क्या होंगे यह तो चुनावों मेंं पता चलेगा किन्तु गोटू टिकट न मिलने पर हाथी पर चढ़ेंगे इसकी सम्भावना यहां बनती नजर आ रही है। हालांकि उनका एक पार्टी छोड़ कर दूसरी में आना और फिर यदि उसे भी छोडऩे के हालात बने तो इसके प्रतिगामी प्रभाव उनको भी झेलने पड़ सकते हैं इसलिए आने वाले कल में क्या कुछ माजरा सामने आता है यह देखना दिलचस्प होगा।