- सिंधिया फैक्टर से मुक्त काँग्रेस में भी सत्ता प्रायोजित फूटन
- भितरघात के अंदेशे से भाजपा में भारी बेचैनी का माहौल
शिवपुरी जिले में राजनैतिक घटनाक्रम जिस तेजी से घूम रहा है उससे यह प्रतीत हो रहा है कि आने वाला विधानसभा चुनाव कड़ी चुनौतियों से भरपूर रहने वाला है।
न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि प्रशासन के लिए भी यह चुनाव काफी मुश्किल भरा साबित होता दिखाई दे रहा है। एक अनुमान के अनुसार आगामी 14-15 अक्टूबर के आसपास चुनावी तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग कर सकता है, और उसके साथ ही यहां आदर्श चुनाव आचार संहिता इंपोज हो जाएगी। यही कारण है कि सत्ताधारी दल के नेता आनन फानन में दे दनादन लोकार्पण और शिलान्यास करने में लगे हुए हैं। इसके पीछे इनकी सोच है कि कहीं ऐसा ना हो कि इसके बाद मौका मिले ना मिले क्योंकि आगामी चुनावी परिदृश्य क्या कुछ होगा कह पाना अभी संभव नहीं है।
राजनैतिक दलों में हलचल
पहले बात करें राजनीतिक दलों की तो कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी टिकट घोषणा के साथ ही भीतर दबा हुआ असंतोष दोनों ही दलों में उभर कर सतह पर सामने आना तय है। यह असंतोष पार्टी के उम्मीदवार जो भी हों उनके लिए चुनौतियोंंका अम्बार खड़ा करेगा।
असंतोष की यह स्थिति सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में तो जबरदस्त दिखाई दे रही है। सिंधिया समर्थक भाजपाईयों का बड़ा वर्ग पशोपेश में है क्योंकि सिंधिया को लेकर अनिश्चितता का वातावरण प्रदेश स्तर पर है ऐसे में इनको यहां भाजपा में कोई ठौर ठिया नजर नहीं आ रहा जो थोड़ा आधार रखते थे वे सिंधिया समर्थक नेता पहले ही काँग्रेस में खिसक लिए। भाजपा में सिंधिया समर्थकों को मिली तबज्जो और मूल नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने भाजपा के कॉडर में भारी असंतोष घोल रखा है जो अब चुनावी दौर मेेंं भाजपा के गले की फांस बन रहा है।यहां लगभग हर सीट पर एक अनार सौ बीमार जिले में पांच सीटें है और प्रत्येक सीट पर एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है एक ही को टिकट मिलना है मगर उसके 10 विरोधी उसी के दल से पूरे सामान सट्टे के साथ उसे पटकने में जुटेंगे इस बात में कोई दो राय नहीं। भाजपा ने करैरा और पिछोर से प्रत्याशी घोषणा में बाजी मार ली है मगर इनका स्थानीय स्तर पर विरोध भी उसे झेलना पड़ रहा है। अभी तो पोहरी शिवपुरी और कोलारस में उम्मीदवार घोषित करने में पार्टी को पसीने आ रहे हैं।
कांग्रेस की जहां तक बात है तो वहां सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में चले जाने के बाद से कम से कम गुटीय स्थिति पूरी तरह से समाप्त हो गई है। लेकिन यहां एक सीट पर कई दावेदार वाली स्थितिफि र भी बनी हुई है, जिसके चलते एक को टिकट मिलने पर ये तमाम दावेदार अवश्य भीतरघात करेंगे और इसकी पूरी जमीन भी तैयार हो चुकी है। कुछ लोगों को भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी रसद पानी मुहैया करा कर कांग्रेस के भीतर इस असंतोष को हवा देने के प्रयास लगातार क्रम में जारी हैं। पब्लिक परसेप्शन की बात करें तो यहां भाजपा के प्रति एंटी इनकंबेंसी फैक्टर इस कदर हावी है कि आम मतदाता असंतुष्ट नेताओं की चालबाजी को धरातल पर कोई महत्व देगा उसकी संभावना न के बराबर है। जाति समूह के ठेकेदार भी सक्रिय हो गए हैं और ये भी चुनावी मौसम में राजनीतिक रंगत में रंगते दिखाई दे रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से पिछोर और करेरा दो सीटों पर ही प्रत्याशी घोषणा हुई है जिसमें पिछोर से प्रीतम लोधी और करेरा से पूर्व विधायक रमेश खटीक को टिकट दिया गया है। कांग्रेस की सूची अब तक प्रतीक्षित है सो यहां अटकलों का दौर जारी है।
अब बात करें प्रशासन की तो यह चुनाव प्रशासन के लिए भी कई चुनौतियों से भरपूर हो सकता है। लॉ एण्ड आर्डर के लिहाज से सबसे सेंसटिव पिछोर और पोहरी कहे जा सकते हैं। शिवपुरी जिले की नौकरशाही पर सत्ता दल की कठपुतली होकर नाचने का ठप्पा लगा है। हालांकि सत्ता जिसकी होती है सिक्का उसका चलता है इसमें कोई नई बात नहीं लेकिन यहां कुछ अधिकारियों ने जिस तरह से पद की गरिमा को ताक पर रख कर मंत्रियों के पिछलग्गू की भूमिका में खुद को पेश कर रखा है उसके दृष्टिगत इनको इनकी इस फितरत के चलते बीच चुनाव से भी किया जा सकता है। इनके इस रवैए पर अन्य दलों की पैनी निगाह है और इनको लिस्टेड भी किया जा रहा है ताकि चुनावों के दौरान इनका यह रवैया फ्री एण्ड फेयर इलेक्शन में आड़े न आए।
जिस तरह से प्रशासन ने पिछले कुछ समय में मंत्रियों के प्रभाव में लीक से हटकर फैसले लिए उसका चिट्ठा चुनाव आयोग तक संदर्भ सहित एक क्लिक में पहुंचाए जाने की पूरी तैयारी के साथ दल तैयार बैठे हैं। हालत यह है कि मंत्रियों को छोडि़ए नपाध्यक्ष और मण्डल के पदाधिकारियों तक के सामने हाथ बांधे खड़े होने वाले इन नौकरशाहों की जमात यहां देखते ही बनती है। चुनावों के दौरान इनका एक भी मनमानीपूर्ण निर्णय इनकी कुर्सी डांवाडोल कर सकता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के सामने आने के बाद तत्कालीन कलेक्टर तरुण राठी को एकदम से हटा दिया गया था ऐसे में राजनैतिक रंगत में रंगी नौकरशाही के तमाम चेहरों को अधबीच से विदाई मिल जाए तो अचम्भा नहीं होगा। कुल मिलाकर आने वाले 60 दिन कई प्रशासनाधीशों के लिए कठिन चुनौतियों से भरपूर होने जा रहे हैं।