- टिकटों की होड़ में भाजपाई और कांग्रेसी भूले अपने-पराए का भेद
- दलबदल के दाग से बड़े नेता भी अछूते नहीं, विरोध समर्थन की राजनीति जारी
- शिवपुरी विधानसभा से पहली बार सिंधिया फैक्टर से मुक्त रहेगी कांग्रेस
- पिछोर में प्रीतम के ब्राह्म्ण समाज के विरोध ने प्रदेश में बढ़ाई भाजपा की मुश्किल
शिवपुरी जिले में टिकटों को लेकर अभी पिछोर विधानसभा सीट को छोड़कर विशेष चार सीटों पर राजनीतिक परिदृश्य स्पष्ट नहीं है। कॉंग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की ओर से कौन आधिकारिक प्रत्याशी होगा इसे लेकर अभी सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे हैं। इन कयासों के बीच दल बदल का जो सिलसिला इस जिले में शुरू हुआ है वह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
भारतीय जनता पार्टी के मूल कैडर के नेताओं से लेकर विधायक तक कॉंग्रेस की सदस्यता ले चुके हैं। सिंधिया समर्थकों के खेमे में कॉंग्रेस की सेंधमारी ने स्थिति यह कर दी है कि जो कुछ गिने चुने चेहरे रह गए हैं, वह भी बेहद क्षीण मनोबल के साथ भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के मध्य बेगाने से दिखाई दे रहे हैं। शिवपुरी विधानसभा सीट पर इस बार बड़ा रोचक संघर्ष होने की अटकलें सामने आ रही हैं। इस क्षेत्र के चुनावी इतिहास में यह ऐसा पहले चुनाव होगा जिसमें सिंधिया फैक्टर से कॉंग्रेस मुक्त होकर मैदान में होगी।
शुरुआती चरण में भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी के कॉंग्रेस में घर वापसी के बाद उनका सिंगल नाम शिवपुरी विधानसभा सीट से पैनल में जाने संबंधी खबरों ने वीरेंद्र की दावेदारी तो अन्य प्रत्याशियों की तुलना में यहां सशक्त कर दिया है, लेकिन कॉंग्रेस के ही कुछ नेताओं ने खुद के नाम आगे कर एक अलग कैंपेन शुरू कर दिया है और उनके द्वारा वीरेंद्र को दल बदल कर आए बाहरी प्रत्याशी के तौर पर परिभाषित कर टिकट के विरोध में लॉबिंग की जा रही है। हालांकि इस कैंपेनिंग में कई नेताओं के ऐसे भी चेहरे भी हैं जो खुद अब से पूर्व दल बदल की परिधि में समय समय पर खड़े होते रहे हैं।
इन परिस्थितियों में कॉंग्रेस नेतृत्व उनके इस विरोध को किस अंदाज में लेता है यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। उधर भारतीय जनता पार्टी से यशोधरा राजे सिंधिया के क्षेत्र बदलने की जो अटकलें उन्हीं के अपने दल के नेताओं द्वारा लगाई जा रही थी, उन्हें खुद यशोधरा राजे सिंधिया ने गति 4 सितंबर को मीडिया से मुखातिब होकर गलत साबित कर दिया और कहा कि मैं अस्थाई नहीं हूं, बल्कि स्थाई हूं।
उन्होंने शिवपुरी विधानसभा सीट से ही चुनाव लडऩे की बात कही। शिवपुरी जिला पंचायत के पूर्व जिला अध्यक्ष जितेंद्र जैन गोटू कोलारस विधानसभा सीट से कॉंग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, तो वहीं कोलारस विधानसभा से ही भाजपा छोड़कर कॉंग्रेस में आए पूर्व सिंधिया समर्थक बैजनाथ सिंह यादव भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। कोलारस विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी की बात करें तो इनमें सिंधिया समर्थक महेंद्र यादव का नाम अव्वल नंबर पर चल रहा है, वहीं उन्हें टिकट न मिलने की स्थिति में देवेंद्र जैन को भी पार्टी प्रत्याशी बन सकती है वशर्तें कॉंग्रेस बैजनाथ सिंह यादव को टिकट देती है तो। कहा जा रहा है कि इस विधानसभा सीट पर जितेंद्र विरुद्ध महेंद्र का मुकाबला होगा वहीं एक भी टिकट गड़बड़ाया तो बैजनाथ विरुद्ध देवेंद्र के बीच मुकाबला हो सकता है। कॉंग्रेस से धाकड़ समाज के सतीश धाकड़ भी जी जान से टिकिट की कवायद में जुटे हैं । इस सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी को लेकर भी अटकल लगाई जा रही है लेकिन फिलहाल ऐसा कोई दमदार चेहरा सामने दावेदारी में नजर नहीं आ रहा।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी से इस बार लोक निर्माण राज्य मंत्री सुरेश रांठखेड़ा को भाजपा फिर से टिकट देगी इसकी संभावना मौजूदा परिस्थितियों में कम बताई जा रही है, न केवल सर्वे उनके विरुद्ध हैं बल्कि उनके विरुद्ध क्षेत्र में भी जबरदस्त माहौल है, वहीं वे संगठन के मनपदण्डों पर भी खरे कम उतर रहे हैं लेकिन यदि सिंधिया की चली तो ही सुरेश रांठखेड़ा को टिकट मिल सकता है।
सुरेश नहीं तो फिर कौन इस सवाल के जवाब में पूर्व विधायक प्रहलाद भारती संगठन की पहली पसंद कहे जा सकते हैं जबकि उमा भारती समर्थक नरेंद्र बिरथरे अपनी खुद की दावेदारी इस सीट से इस हद तक जाता चुके हैं कि उन्होंने पिछले दिनों अपने तमाम समर्थकों को एकत्र कर टिकट की खातिर शक्ति प्रदर्शन ही कर डाला। उनके तेवर चुनाव से पूर्व बगावती दिखाई दे रहे हैं। कॉंग्रेस से कैलाश कुशवाहा, कल्याण वर्मा और प्रद्युम्न वर्मा के नाम हवा में है। यहां बता दें कि कैलाश कुशवाहा गत समय बहुजन समाज पार्टी से त्यागपत्र देकर कॉंग्रेस में शामिल हुए हैं। उन्होंने पिछली मर्तबा कॉंग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी हरि बल्लभ शुक्ला को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया था, इससे पूर्व के चुनाव में भी वह निकटतम प्रतिद्वंदी के तौर पर सामने आए थे और भाजपा को तीसरे क्रम पर धकेल दिया था। अब बात करें करैरा विधानसभा क्षेत्र की तो यहां से सिंधिया समर्थक जसवंत जाटव भले ही टिकट की दौड़ में हों लेकिन उनके विरुद्ध माहौल कुछ अधिक ही दिखाई दे रहा है, ऐसी स्थिति में रमेश खटीक यहां भाजपा की पसंद बन सकते हैं बशर्ते की सिंधिया जसवंत जाटव के नाम पर वीटो ना लगाए। कॉंग्रेस से फि लहाल विधायक प्रागी लाल जाटव का नाम है लेकिन प्रगीलाल की परफॉरमेंस को जनता में खास पसंद नहीं किया जा रहा, ऐसे में संभव है कि उनके टिकट पर संगठन की कैंची चल जाए। हालांकि विकल्प के तौर पर भी फिलहाल कोई ऐसा दमदार चेहरा सामने नहीं दिखाई दे रहा जो मैदान मार सके। इस सीट पर भी ऐन समय पर दल बदल की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
पिछोर विधानसभा सीट पर पूर्व मंत्री एवं विधायक केपी सिंह कक्काजू पिछले 30 साल से अविजित रहे हैं और उनके समक्ष भारतीय जनता पार्टी ने 39 प्रत्याशियों की पहली सूची में ही प्रीतम लोधी को लगातार हार के बावजूद तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है। प्रीतम लोधी के टिकट को लेकर ब्राह्मण समाज खास उद्वेलित है और प्रदेश भर में प्रीतम के विरुद्ध प्रदर्शनों के चलते भाजपा को समूचे प्रदेश में ब्राह्मणों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है। इस आशय का अल्टीमेटम ब्राह्मण संगठनों द्वारा पिछले दिनों दिया जा चुका है।
यहां बता दें कि प्रीतम लोधी ने पिछले समय 17 अगस्त 2022 को मंच से ब्राह्मण समाज के विरुद्ध अमर्यादित टिप्पणियां की थी जिसे लेकर उनके खिलाफ प्रदर्शन हुए और भाजपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर बाहर का रास्ता दिखाया, लेकिन 7 महीने बाद ही प्रीतम की भाजपा में घर वापसी और बोनस के तौर पर तीसरी बार प्रीतम को प्रत्याशी बनाए जाने को ब्राह्मण समाज ने अपनी अस्मिता से जोड़कर देखा है। यही कारण है कि विरोध के सुर तेज होते जा रहे हैं। कुल मिलाकर राजनैतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है लेकिन इस उठापटके के बावजूद एक सप्ताह के भीतर काफी कुछ स्थिति पांच में से तीन सीटों पर स्पष्ट होने की सम्भावना है। कुछ सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना भी एकदम से खारिज नहीं की जा सकती