हमारे आचार्य कहीं न कहीं ये बात हज़ारो साल पहले से ही जानते थे की अधिक् अथवा उचित मात्रा में व्यायाम न करने से शरीर में मृत्यु जनक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। हम अपने रोज़मर्रा के जीवन में कई ऐसे युवा पीड़ी को देखते हैं जो नित्य gym जाने पर भी हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट अदि कई मृत्यु जनक बीमारियो के शिकार हो जाते हैं। आज हम जानेंगे की आयुर्वेद में व्यायाम का उल्लेख किस प्रकार है ।
व्यायाम की परिभाषा
अब हम व्यायाम के बारे में देखेंगे व्यायाम का वर्णन किस प्रकार चरक करते हैं परिभाषा में चरक कहते हैं कि जो अभीष्ट क्रिया शरीर की स्थिरता रखने वाली और बल बढ़ाने वाली होती है या की जाती है उसे व्यायाम कहते हैं। व्यायाम को उचित मात्रा में ही करना चाहिए।
शरीरचेष्टा या चेष्टा स्थैर्यार्था बल वर्धिनी। देहव्यायामसंख्याता मात्रया तां समाचरेत्।।
(च॰सू ७/३१)
व्यायाम से लाभ
व्यायाम करने से शरीर में हल्का पन, कार्य करने का सामर्थ्य, शरीर में स्थिरता, कष्ट सहने की शक्ति, और जठरागनी (डाइजेस्टिव फायर) की वृद्धि होती है।
अति व्यायाम से हानि
अधिक व्यायाम करने से थकावट, मन और इंद्रियों में शिथिलता, रस आदि धातुओं का क्षय, ज्वर और वमन रोग होते हैं।
व्यायाम के लक्षण
पसीना आना, श्वास की वृद्धि, अंगों में हल्कापन, ह्रदय में अवरोध की प्रतीती व्यायाम के लक्षण हैं।
अतिव्यायाम का निषेध
बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि नित्य अभ्यास रहनें पर भी व्यायाम को अधिक मात्रा में न करे।
व्यायाम के अयोग्य पुरुष
जो व्यक्ति अधिक मैथुन, अधिक भार को ढोने और अधिक चलने फिरने से दुबले पतले हों,जो क्रोध,शोक,भय, परिश्रम से पीड़ित हैं,
साथ ही बच्चे, वृद्ध और जो भूखे प्यासे हैं, ऐसे लोगों को व्यायाम नहीं करना चाहिए।