-प्रकरण को दबाने की जुगत जुटे हैं जिम्मेदार, ताकि पोल न खुले चारे की
शिवपुरी की गौशाला में हुई एक साथ 14 गायों की मौत के मामले के बाद से यह गौशाला और इसका नगर पालिका द्वारा किया जा रहा प्रबंधन अब गहन जांच के घेरे में आ गया है। यहां बता दें कि पूर्व से इस गौशाला का संचालन निस्वार्थ भाव से शहर के सेवाभावी समाजसेवी संगठनों और लोगों द्वारा किया जा रहा था, जिसका प्रबंधन नई बनी नगर पालिका ने समाजसेवियों के हाथों से छीनकर अपने अधीन कर लिया। इसके बाद तो स्थिति इस कदर बिगड़ी कि इस गौशाला में आए दिन गायों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया, और बीते सप्ताह एक ही रात में 14 गायों की मौत के मामले ने पूरे शिवपुरी वासियों को हिला डाला।
जन चर्चा के अनुसार जो खबर छनकर सामने आ रही है उसके तहत सूत्रों का कहना है कि अकेले 17 फरवरी से 27 फरवरी के बीच यानी 10 दिन में शिवपुरी गौशाला की गायों के लिए 2 लाख 83000 का भूसा दर्शाया गया है। इन आंकड़ों की आधिकारिक पुष्टि के लिए नगर पालिका के जिम्मेदारों से चर्चा करनी चाही लेकिन कोई भी इस पर टिप्पणी करने या वस्तु स्थिति से अवगत कराने तैयार नहीं हुआ। इतना तय है कि गौशाला के प्रबंधन के नाम पर नगर पालिका ने शुरू से लेकर अब तक जबरदस्त कागजीबाड़ा किया है और इसे दबाने के लिए अब तरह तरह के हथकंडे और दिखावे किए जा रहे हैं। जिस समय इन गायों की मौत हुई उस समय सैंकड़ा से ऊपर की संख्या में गायें गौशाला में मौजूद थीं लेकिन उनके लिए भोजन के नाम पर 6 कट्टे ही वहां रखे दिखाई दिए। जिन गायों की मौत हुई उनकी मरियल सी काया इस तथ्य का बयान कर रही थी कि वह भूख से मरी है। नगर पालिका प्रबंधन ने गायों की भूख से हुई मौत को नकराने के लिए अपने स्तर पर कई तर्क खड़े किए जिनमें से एक भी तर्क नागरिकों के गले अब तक नहीं उतर पाया। अब जिन आंकड़ों की सुगबुगाहट जन चर्चा में सामने आई है वह यदि सही है और इसकी पुष्टि होती है तो यहां भी बिहार की तर्ज पर बड़े नहीं तो यहां के लिहाज से छोटे नहीं कहे जा सकने वाले चारा घोटाले की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। बड़ा सवाल यह है कि जो जिला प्रशासन खुद नेताओं की कठपुतली बनकर काम कर रहा है ऐसे में उसके द्वारा मामले की निष्पक्ष जांच संभव होगी, इसकी संभावना कहीं से कहीं तक नहीं है बल्कि आला अधिकारी पूरे मामले को दबाने की जगत में शुरू से ही दिखाई दे रहे हैं।