- मुख्यमंत्री ने लिया ज्ञापन आदिवासियों ने की पोषाहार की राशि 1000 की जगह 5000 करने की मांग
- 15 सूत्रीय मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के आज पोहरी आगमन पर सहरिया क्रांति ने अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सहरिया क्रांति सदस्यों को बैनर के साथ देखा तो आगे निकल गई अपनी गाड़ी को रुकवाया और ज्ञापन लेने के बाद सहरिया क्रांति सदस्यों को आश्वाशन दिया कि सभी मांगों का अध्यन करने के बाद गंभीरतापूर्वक विचार किया जाएगा। इसके बाद मुख्यमंत्री का काफिला आगे बढ़ा।
आदिवासियों ने ज्ञापन के माधायम से बताया कि सहरिया क्रांति एक सामाजिक आंदोलन से जुड़ कर हम एवं हमारे हजारों सहरिया आदिवासी समाज के लोग व्यसन से मुक्ति पा चुके हैं आज हमारा हर सहरिया आदिवासी परिवार विकास की मुख्यधारा में जुड़ना चाहता है लेकिन कदम कदम पर प्रशासनिक उपेक्षा एवं दमन शोषण के कारण सहरिया आदिवासी को शासन की योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है केवल कागजों में ही सहरिया समाज और आदिवासी का उत्थान हो रहा है उसी का नतीजा है कि सहरिया आदिवासी समाज में कुपोषितो की संख्या सर्वाधिक है।
गरीब आदिवासियों के उत्थान के लिए सहरिया क्रांति निम्न बिंदुओं पर अपनी मांग आपके समक्ष रख रही है हमें उम्मीद है कि उक्त मांगों को सहरिया आदिवासी समाज के हितार्थ शीघ्र अति शीघ्र पूरा कर गरीब कल्याण की दिशा में आप ठोस कदम उठाएंगे।
सहरिया क्रांति की प्रमुख मांगे
सहरिया क्रांति के माध्यम से जो मांग की गईं हैं उनमे प्रमुख रूप से सहरिया महिलाओं को पोषाहार की राशि 5000 रुपये करने की मांग रखते हुये सहरिया क्रांति प्र्देशाध्यक्ष औतार भाई सहरिया,कल्याण आदिवासी, अजय आदिवासी, ऊधम आदिवासी, राजेश आदिवासी, केशव आदिवासी ने संयुक्त रूप से जानकारी देते हुए बताया कि शासन द्वारा सन 2018 में सहरिया परिवारों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के नाम पर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा पोषण आहार के नाम पर जनधन खातों में ₹1000 जमा कराने का सराहनीय निर्णय किया था जो तत समय की महंगाई को देखते हुए उचित कदम था लेकिन आज लाडली बहना जैसी योजनाओं को क्रियान्वित कर हर समाज के लिए ₹1000 की राशि महिलाओं के खाते में सरकार भिजवा रही है वहीं इस महंगाई के दौर में अति गरीब और देश की सबसे पिछड़ी जनजाति सहरिया महिलाओं को दाना पानी लेना भी मुश्किल हो गया है ऐसे में अब ₹1000 की राशि ऊंट के मुंह में जीरा बराबर नजर आती है इससे ना तो बच्चों को पोषाहार मिल पा रहा है और ना ही खाने तक की व्यवस्था सहरिया परिवारों में हो पा रही है अतः महंगाई के वर्तमान दौर को देखते हुए देश की सबसे पिछड़ी जनजाति सहरिया जनजाति की महिलाओं को सरकार द्वारा तत्काल ₹5000 पोषाहार के नाम पर महिलाओं के खाते में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे सहरिया समाज में फैला कुपोषण का कलंक मिट सके।
मांग का दूसरा बिन्दु पट्टों से संबन्धित है जिसमे बताया गया कि सहरिया समाज के गरीब लोगों को अब से लगभग 21 वर्ष पूर्व शासन द्वारा सन 2002 में भूमि के पट्टे दिए गए थे जिसके बाद किसी भी गरीब आदिवासी को कृषि कार्य हेतु पट्टा नहीं दिया गया जबकि इन 21 सालों में नई पीढ़ी बेरोजगारों की संख्या में खड़ी हो गई है और अब उस जमीन के टुकड़े से जीवन यापन करना दुष्कर हो गया है ऐसी स्थिति में शासन द्वारा नियमावली बनाकर तत्काल खेती किसानी से जुड़े परिवारों के युवाओं को शासन द्वारा पट्टे प्रदाय किए जाएं जिससे परिवार का जीवन यापन किया जा सके।
शासन द्वारा सहरिया आदिवासी परिवारों को कृषि कार्य हेतु जो पट्टे प्रदाय किए भी गए थे उनमें से आज भी 90% से अधिक पर क्षेत्र के दबंग और बाहुबली लोगों का कब्जा है और कुछ पट्टों पर अभी तक अमल नहीं किया गया है जिससे आदिवासी परिवार अपनी खेती नहीं कर पा रहे और भूखों मरने को विवश हो रहे हैं। सहरिया क्रांति मांग करती है कि शासन स्तर से अभियान चलाकर सहरिया आदिवासियों को मिले हक की कृषि भूमि पर उन्हें काबिज करा कर मॉनिटरिंग कराई जाए। साम दाम अपनाकर कोई भी आदिवासियों की जमीन ना कब्जा सके । इसके लिए शासन स्तर से नीति बनाकर अमल में लाया जाए।
सहरिया आदिवासी समाज के शिक्षित युवाओं को सीधी भर्ती कर सरकारी नौकरी में प्राथमिकता दी जाए जिससे उन को रोजगार मिल सके।
सहरिया क्रांति के ज्ञापन में मांग की गई है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में गरीब सहरिया आदिवासियों की अनदेखी की जा रही है उनकी जगह जिन्हें पात्रता में प्रथम पंक्ति में रखना चाहिए उन लोगों को अभी तक गांव में आवास मुहैया नहीं कराए गए हैं और ना ही किसी तरह की राशि उनको दी गई है जबकि जो पूर्व पूर्व से साधन संपन्न है और इनके पास पक्के मकान भी हैं ऐसे कई लोगों को आवास योजना में आवास स्वीकृत कर दिए गए हैं हमारी मांग है कि सहरिया जनजाति के अति गरीब लोगों को गांव-गांव में प्राथमिकता के आधार पर सर्वप्रथम आवास उपलब्ध कराए जाएं जिससे वह घास फूस की झोपड़ियों की अपेक्षा पक्के मकान में जीवन यापन कर सकें।
इसी प्रकार गांव में जाति प्रमाण पत्र को लेकर शहरी आदिवासियों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है प्रशासन उन्हें हर स्तर पर परेशान करने के बावजूद भी जाति प्रमाण पत्र जारी करने में आनाकानी करता है अत्यंत गरीब एवं अशिक्षित होने के कारण बालकों की जाति प्रमाण पत्र पूर्व में कभी नहीं बन पाए जिस कारण और उनके बच्चों के लिए जाति प्रमाण पत्र में परेशानी उत्पन्न की जाती है शासन स्तर पर एक बड़ा अभियान चलाकर गांव गांव में शिविर लगाकर सहरिया जनजाति के लोगों के जाति प्रमाण पत्र बगैर कठिनाई के तैयार करने की कार्यवाही को अंजाम दें जिससे अपने अपने हक अधिकार से सहरिया जनजाति के लोग वंचित ना रहे।
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की व्यवस्था को शीघ्र दूरस्त कर शिक्षकों को चेतावनी दें कि जिस गांव में भी बच्चे जिस कक्षा में है उसका अच्छा का ज्ञान नहीं रखते तो उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी । वहीं ग्रामीण अंचल में स्थित विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त पड़ी हुई है आदिवासियों के बच्चों को विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन सही से प्राप्त नहीं हो पा रहा है उदाहरण के तौर पर बहादुरा झंडी विद्यालय में बच्चे मध्यान भोजन की आवाज में अब विद्यालय आना ही बंद कर चुके हैं ऐसी स्थिति में तत्काल जिला प्रशासन को निर्देशित करें कि वह मध्यान्ह भोजन व्यवस्था को तत्काल दुरस्त करें।
सहरिया क्रांति ने ज्ञापन के माध्यम से मांग की है कि सन 2002 में हजारों गांवों में सहरिया जनजाति के लोगों को भूमि स्वामी अधिकारों की मंजूरी हेतु पट्टा प्रदान किए गए थे विडंबना यह है कि आज लगभग 22 साल बाद भी उन पदों पर अमल नहीं किया गया है और आदिवासी अपनी जमीनों पर अधिकार पाने के लिए यहां से वहां भटकते फिर रहे हैं सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए बेहद परेशान हो रहे हैं लेकिन उनके पर अमल नहीं हो पा रहा है इस व्यवस्था को तुरंत दुरुस्त करें और आदिवासियों को राहत प्रदान करें।
शासकीय उचित मूल्य की दुकानों से सहरिया हितग्राहियों को समय पर राशन वितरित नहीं किया जाता कई कई कंट्रोल की दुकानों से तो दो 2 महीने तक का राशन गायब कर दिया जाता है राशन व्यवस्था को सही से संचालित करने का ढांचा तैयार करें जिससे कि गरीबों का राशन कोई ना डकार सके।
भाषाई शिक्षकों की पीड़ा भी रखी
शासन द्वारा सहरिया आदिवासी बच्चों को शिक्षा में लाभ मिल सके इसके लिए भाषाई शिक्षकों की नियुक्ति की गई थी जिससे कि सहरिया बच्चे अपनी भाषा में पढ़ाई कर सकें लेकिन 2014 में एक हिटलरी आदेश निकालते हुए सभी सहरिया भाषाई शिक्षकों की सेवाएं समाप्त कर दी गई तब से यह पढ़े-लिखे लड़के यहां से वहां बेरोजगार भटकते घूम रहे हैं इनके लिए तमाम बार शिकायतें की जा चुकी हैं और कई प्रदर्शन भी किए मगर कोई लाभ आदिवासी भाषा शिक्षकों को नहीं मिल सका है इस संभाग के भाषाई शिक्षकों की तत्काल सेवाएँ बहाल की जाएँ।