विधायक वीरेंद्र रघुवंशी के भारतीय जनता पार्टी छोड़कर काँग्रेस में घर वापसी को काँग्रेस के वह नेता नहीं पचा पा रहे हैं, जो खुद टिकट के लिए अपनी दावेदारी जाता रहे हैं। हालत यह है कि इन चंद काँग्रेस के टिकटार्थियों का समूह 24 सितंबर को वीरेंद्र के खिलाफत में राजधानी प्रस्थान कर गया जहां कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से भेंट कर वीरेंद्र को टिकट न दिए जाने की बात कहीं जा सकती है। हालांकि इन टिकटार्थियों की बात को आला कमान समूची काँग्रेस की बात मानेगा इसकी संभावना न के बराबर है।
खबर तो यहां तक निकल कर आ रही है कि इस विरोध को भारतीय जनता पार्टी का एक गुट पर्दे के पीछे से हवा दे रहा है, जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ यह है कि वीरेंद्र रघुवंशी को किसी भी स्थिति में शिवपुरी से काँग्रेस प्रत्याशी न बनाया जाए। अब इस गुट के नेताओं के बीच राय शुमारी की जाए तो इनमें से कोई भी अपने नाम को छोड़कर किसी एक नेता के नाम पर सहमत होगा इसकी कोई संभावना नहीं है, क्योंकि सब अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे हैं। खुद को मूल काँग्रेसी परिभाषित करने वाले नेताओं में कुछ नेताओं की काँग्रेस निष्ठा को लेकर भी कई दिलचस्प सवाल खड़े हो रहे हैं। अतीत की उनकी भूमिका और पिछले ही कुछ दिनों में दिखाई दिया इनका पार्टी के प्रति कार्य व्यवहार कहीं ना कहीं उनकी पार्टी निष्ठा पर सवाल खड़ा करने वाला है। भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी को भाजपा में क्यों जाना पड़ा, इसका अपना कारण है और वह कारण है ज्योतिरादित्य सिंधिया से उनकी अनबन और इस अनबन के पीछे भी कारण यह रहा कि जब वीरेंद्र रघुवंशी शिवपुरी से चुनाव लड़े तो कहा जाता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यशोधरा राजे के विरुद्ध उनका साथ नहीं दिया। इसके बाद सिंधिया और वीरेंद्र के रिश्तों के बीच खटास आना शुरू हो गई। स्थिति यह बनी कि रघुवंशी को काँग्रेस छोड़कर भाजपा में जाना पड़ा, वहां वे कोलारस से चुनाव जीते और विधायक बने।
सब कुछ सहज होता लेकिन कुछ दिनों बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा में एंट्री ने वीरेंद्र रघुवंशी के साथ वही स्थितियां निर्मित कर दी जिनके चलते वीरेंद्र रघुवंशी ने काँग्रेस छोड़ी थी और अंत में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद वीरेंद्र रघुवंशी को भाजपा छोडऩा पड़ गई। शिवपुरी से विधायक रहे वीरेंद्र रघुवंशी कोलारस विधायक रहते हुए भी शिवपुरी की राजनीति में जनता से जुड़े कुछ बड़े मुद्दों पर सक्रिय बने रहे। अब जबकि उन्होंने भाजपा से नाता तोड़कर काँग्रेस का हाथ पकड़ा है तो स्वाभाविक तौर पर उनकी शिवपुरी सीट पर दावेदारी संभावित जानकर काँग्रेस के अन्य दावेदार इस मुद्दे पर लामबंद होकर उनके विरोध में खड़े हो गए हैं। हालांकि खुद काँग्रेसियों में इस बात पर मतभिन्नता है और कई काँग्रेस नेताओं का कहना है कि दर्जन भर लोग ही पूरी काँग्रेस नहीं है। काँग्रेस की जमीनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी को वर्तमान स्थिति में सशक्त उम्मीदवार चाहिए जिसके सम्मुख न केवल शहरी बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में पहचान का संकट ना हो। वीरेंद्र रघुवंशी शिवपुरी से 2007 में विधायक रह चुके हैं, इसके बाद उन्होंने दो चुनाव और लड़े ऐसे में रघुवंशी शिवपुरी के लिए अपरिचित चेहरा नहीं है। खुद काँग्रेस नेताओं का कहना है कि यदि जो लोग इस समय एकजुट होकर भोपाल गए हैं, यदि वह किसी एक नाम पर सहमति लेकर जाते तो उनका यह विरोध काँग्रेस आला कमान को भी सोचने पर विवश करता, लेकिन एक का विरोध और अपने अपने नाम की पैरवी के मंसूबे के साथ जो एकजुटता दिखा रहे हैं उनकी यह एक जुटता किसी एक के नाम पर सहमति के सवाल पर बिखरती दिखाई दे सकती है। शिवपुरी के टिकटार्थियों ने भोपाल में क्या कुछ खिचड़ी पकाई इसका पता तो बाद में चलेगा मगर इतना तय है कि काँग्रेस में भी अब गुटबाजी को हवा मिलनी शुरु हो गई है।