-न पदों की प्रमाणित जानकारी न हाईकोर्ट से लेकर जीएडी के आदेश की परवाह
-शिक्षक संगठनों ने आरटीई की अनुसूची की मनमानी व्याख्या पर उठाए सवाल
स्कूली शिक्षकों की युक्तियुक्त करण प्रक्रिया तमाम विसंगतियों के चलते अनियमितताओं के भंवर में फंस गई है। यह प्रक्रिया का शिक्षा विभाग द्वारा ऑनलाइन शिक्षा पोर्टल के माध्यम से जिस तरह से की जा रही है, सबसे बड़ी तो विसंगति इसी पोर्टल में देखने को मिल रही है। 28 से काउंसलिंग किए जाने का फरमान जारी किया गया और 27 अगस्त की दोपहर तक विभाग का पोर्टल ही अपडेट नहीं था। इसके आंकड़ों में निरन्तर बदलाव देखने में आया। पोर्टल में विसंगतियों की इस कदर भरमार है कि इन्हें ठीक करने में ही कई हफ्ते लगना तय है। विभाग ने शिक्षकों को मनमानी व्याख्या के आधार पर अतिशेष बता कर उन्हें सुनवाई का समुचित अवसर नहीं दिया। 23 अगस्त को पालिसी जारी हुई जो 24 अगस्त की शाम शिक्षकों को अनाधिकृत तौर पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रदर्शित दिखी, इसके साथ ही कार्यालयों में 24, 25 और 26 अगस्त का अवकाश घोषित होने से शिक्षकों को न तो पदीय जानकारी मिली न ही उन्हें स्वयं के अतिशेष होने सम्बंधी कोई पुख्ता और प्रमाणित जानकारी मिल पाई। इसी बीच 26 की रात को एक संदेश चलता है कि जिन लोक सेवकों को आपत्ति है वे अपने दावे आपत्ति 27 अगस्त को दोपहर 2 बजे तक डीईओ कार्यालय में दर्ज कराऐं। शिक्षकों का कहना है कि उन्हें इस सम्बंध में सुनवाई का रीजनेवल समय ही नहीं दिया गया और एकपक्षीय निर्णय की मानसिकता में विभाग के अधिकारियों ने जो आपत्ति दर्ज कराने की औपचारिकता पूरी की वे आपत्तियां भी किसी भी स्थिति मेें 27 को ही निराकृत की जाने की बाध्यता डीपीआई के स्तर से लादी गई। यानि सुनवाई सिर्फ स्वांग कही जा सकती है। दूरस्थ क्षेत्र के शिक्षक तो चाह कर भी मुख्यालय पर आपत्ति पेश करने नहीं आ पाए। पोर्टल अभी भी विसंगतियों से भरा है।
ऐसे में अतिशेष शिक्षक शिक्षा विभाग का पोर्टल ही अपडेट नहीं है इसमें ऐसे शिक्षकों को भी अतिशेष दर्शाया जा रहा है जिन्हें पिछले दिनों उच्च पद के प्रभार देकर पदोन्नति किया जा चुका है। वहीं पोर्टल में शिक्षकों की वरिष्ठता और कनिष्ठता की तिथियां भी गलत दर्ज होने से 2022 की स्थानांतरण नीति के उल्लंघन की भी संभावनाएं यहां बढ़ गई हैं। शिक्षा विभाग ने कमिश्नर एजुकेशन के स्तर से इस प्रक्रिया को आपाधापी में पूर्ण किया जाना समझ से परे है। शिक्षकों को उनके अतिशेष होने का आधार बताया, जिस कारण आने वाले समय में यह प्रक्रिया न्यायालय में चुनौती पूर्ण स्थितियां पैदा करेगी। कर्मचारी संगठनों की भूमिका भी यहां विरोध की है पूरे प्रदेश में इसका पुरजोर विरोध हो रहा है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि जो कुछ हो रहा है वह राजधानी के स्तर से आयुक्त कार्यालय द्वारा ऑनलाइन किया जा रहा है इसमें उनका कोई दखल नहीं है।
शिक्षा विभाग में इस कदर से घालमेल देखा जा रहा है राज्य शिक्षा केंद्र और डीपीआई के बीच ही कोई तालमेल दिखाई नहीं दे रहा, जिस कारण धरातल पर सारी व्यवस्थाएं चौपट पड़ी हुई हैं। शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों को भी उच्च अधिकारियों ने अपने मन माफिक ढंग से तोड़ मरोड़ कर परिभाषित किया है। सर्वाधिक असमंजस की स्थिति स्वीकृत पदों और अतिशेष को लेकर विज्ञान, समाजशास्त्र और हिंदी विषय में बन रही है। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी शिवपुरी से लेकर संभागीय संयुक्त संचालक शिक्षा ग्वालियर तक को स्कूलों में पदीय संरचना स्वीकृत पदों खाली पड़ा और अतिशेष पदों की कोई जानकारी नहीं है । शिक्षक नेता बीपी शर्मा का कहना है कि इस संबंध में उनके शिवपुरी जिला शिक्षा अधिकारी और ज्वाइन डायरेक्टर एजुकेशन ग्वालियर के कार्यालय में दो माह से सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन लंबित हैं और दोनों ही स्तर पर अधिकारी प्रमाणित तौर पर विज्ञान के अतिशेष या रिक्त पदों की स्कूल बार जानकारी नहीं दे पा रहे हैं। इसके विपरीत कमिश्नर स्तर पर भोपाल से किस आधार पर पोर्टल में अतिशेष और रिक्त तथा स्वीकृत पद अपलोड किए गए हैं, यह अपने आप में गंभीर विसंगति मूलक बिंदु है। कमोवेश समूचे प्रदेश में यही स्थिति सामने आ रही है।
प्रमुख सचिव, कमिश्रर सहित अन्य अफसरों को लीगल नोटिस जारी
-पालिसी की विसंगतियों को नहीं सुधारा तो करेंगे कोर्ट में चैलेंज
इस सम्बंध में शिवपुरी के अभिभाषक एड राजीव शर्मा ने इस अतिशेष के सम्बंध में अपनाई जा रही पॉलिसी की खामियों को अबिलम्ब दूर करने एक लीगल नोटिस 25 अगस्त को ही पीएस, कमिश्नर, डीएम से लेकर डीईओ को ईमेल पर प्रेषित किया है। जिसमें शिक्षकों को पर्याप्त सुनवाई का अवसर न दिया जाकर प्राकृतिक न्याय सिद्धांत की अनदेखी करने, अतिशेष की स्थिति के लिए अफसरों द्वारा माननीय हाईकोर्ट जबलपुर के 20 नवम्बर 2008 में पारित निर्णय की खुलेआम अवहेलना करने आरटीई 2009 के प्रॉविजन की मनमाने ढंग से व्याख्या कर विज्ञान जैसे विषय से छात्रों को वंचित करने जैसे महत्वपूर्ण प्वाइंट रेज कर उनके संज्ञान में लाने का काम किया है। अभिभाषक राजीव शर्मा का कहना है कि वे इस प्रकरण में विभागीय प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा में हैं यदि समुचित समाधान कारक कदम नहीं उठाए गए तो माननीय हाईकोर्ट में विसंगति मूलक कार्यवाही को चुनौती दी जाएगी। इस पालिसी और पोर्टल की स्थिति को देखते हुए प्रक्रिया में सरकारी आदेश और दिशा-निर्देशों का उल्लंघन,विद्यालय शिक्षा विभाग की स्थानांतरण नीति (2022) का पालन न होना, विज्ञान सहित अन्य विषय शिक्षकों की सही जानकारी प्रदान करने में विफलता, न्यायिक आदेशों और सरकारी निर्देशों का उल्लंघन, विज्ञान प्रयोगशाला सहायकों की अनुचित नियुक्ति, आरटीई अधिनियम 2009 का उल्लंघन, एक परिसर, एक स्कूल अवधारणा के तहत स्टाफ का अप्रभावी उपयोग, विज्ञान शिक्षकों का गलत वर्गीकरण, अधिशेष शिक्षकों के बारे में गलत डेटा।
शिक्षकों की अनुचित पदस्थापना सहित तमाम विसंगतियां सामने हैं। इन्हें दूर किए बिना की गई पोस्टिंग की कार्यवाही विधि सम्मत नहीं होगी, ऐसे में यह प्रक्रिया तब तक रोकी जाए तब तक विसंगतियों का निवारण नहीं होता।