अब भी बाबूगिरी में जुटे शिक्षक, स्कूल खुलने के दो माह बाद भी सरकारी स्कूलों में नहीं मिली पुस्तकें

स्कूलों के हाल बदहाल, बाबू बने शिक्षक

कमिश्रर का आदेश कचरे में : शिक्षक दफ्तरों में अटैच, अफसरों को बैठकों से फुर्सत नहीं

सबसे बड़े विभाग के तौर पर पहचान रखने वाले शिक्षा विभाग के हाल बेहाल हैं। यहां अधिकारियों को बैठकों से फुर्सत नहीं, शिक्षकों का बड़ा अमला अधिकारियों ने मनमर्जी से बाबूगिरी में जुटा कर रखा हुआ है। तमाम शालाओं पठनपाठन की सामग्री, पुस्तकों का वितरण पूरी तरह से आज तक नहीं हो पाया। नए सत्र में बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक की शालाओं में नि:शुल्क गणवेश का वितरण तो छोड़िए यहां तो जिले मेंं गत वर्ष की ही स्कूल ड्रेस आज तक नहीं बंटी है। जिले में जिला शिक्षा अधिकारी से लेकर कलेक्टर तक ने कमिश्रर स्कूल एजुकेशन के आदेश को कोई तवज्जोह नहीं दी जिसमें शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कार्य से तत्काल मुक्त कर उनकी मूल संस्थाओं में पदस्थ करने के निर्देश दिए गए हैं। यहां निर्वाचन, एसडीएम आफिस, डीईओ के स्तर से और विकासखण्ड और बीआरसी स्तर पर तमाम शिक्षकों की फौज गैर शिक्षकीय कार्य करती दिखाई दे रही है। राजस्व के अधिकारियों को द्वारा कराई जा रही बेगार में तमाम शिक्षकों को भी रुचि है ऐसे में उन्होंने वर्षों से स्कूलों की सूरत तक नहीं देखी। शिक्षा अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत शिक्षकों से गैर शिक्षकीय कार्य लेकर उनसे बाबूगिरी कराई जा रही है। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में भी शिक्षकों को गैर शिक्षकीय कार्य करते देखा जा सकता है। खेल के लिए विभाग में व्यायाम निदेशक पदस्थ हैं मगर यहां खेल के लिए भी शैक्षिक अमला बुलाया जाकर स्कूलों को खाली करने में जुटे हैं अफसर। स्कूल भवनों की बात करें तो खुद डीपीसी ने स्वीकार किया है कि इस समय 399 स्कूल भवन उपयोग के योग्य नहीं है। सवाल उठता है कि सर्व शिक्षा अभियान का खुद का तकनीकी अमला क्या कर रहा है। यहां के तमाम इंजीनियर दीगर विभागों मेंं नियम विरुद्ध सेवाएं कैसे दे रहे हैं। यहां कई शालाओं की स्थिति यह है कि शिक्षकों को हस्ताक्षर तो शाला में करा दिए जाते हैं मगर उनसे काम कार्यालयों और संकुलों पर बाबूगिरी का लिया जा रहा है जिससे बच्चों के भविष्य पर यहां सवाल खड़ा हो रहा है।

नियमानुसार शिक्षकों से किसी भी तरह का गैर शिक्षकीय कार्य लिया जाना वर्जित है और आरटीई के प्रावधानों के भी सर्वथा विपरीत है मगर यहां कलेक्टर के संज्ञान में सब कुछ होने के बावजूद यह प्रथा अनवरत क्रम में जारी है। सत्र के शुरुआत में कलेक्टर ने बड़े जोशो खरोश के साथ स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था का ढिंढोरा पीटा तो लगा कि इस बार हालात बदलेंगे मगर ये तमाम प्रयास स्वांग के अलावा कुछ भी साबित नहीं हुए। शिवपुरी में मॉनिटरिंग की बात करें तो डीईओ से लेकर डीपीसी या बीआरसी के स्तर पर कोई मानिटरिंग नहीं की जा रही और कागजों में निरीक्षण दर्शाए जा रहे हैं। सरकारी स्कूलों में दो पाली वाले स्कूलों की हालत यहां मुख्यालय पर ही यह है कि सुबह 8:30 बजे स्टॉफ आता है और 12 बजे छुट्टी कर वापसी की राह पकड़ ली जाती है, जबकि इसी में बच्चों के आधा घंटे का रेस्ट पीरियड भी शामिल है। शिक्षा व्यवस्था का ढर्रा यहां इस हद तक बिगड़ा हुआ है कि 18 जून से शुरु हुए शिक्षा सत्र में अगस्त माह के मध्य तक बच्चों को निशुल्क पुस्तकों का वितरण तक पूर्ण रुपेण नहीं हो सका। जिले के ऐसे तमाम स्कूल हैं जहां बच्चों को आज दिनांंक तक कई विषयों की पुस्तकें उपलब्ध नहीं कराई गईं अधूरा पुस्तक वितरण समझ से परे है। जिला प्रशासन के अधिकारियों को बैठकोंं में निर्देश देने की और इन्हें अखबारों में छपवाने की सुधि रहती है मगर उन निर्देशों का पालन धरातल पर कितना और किस हद तक हो रहा है इसकी कोई परवाह उन्हें नहीं है।

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Rahil Sharma
Rahil Sharma
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