प्रायवेट क्लीनिक्स पर सेवाएं देने में तल्लीन डॉक्टर्स, अस्पतालों में मरीजों की फजीहत

जिले में व्यवस्थाएं लड़खड़ाई
  • आयुष्मान बना काली कमाई का बड़ा जरिया
  • निजी अस्पताल चलाने से सरकारी अमले को फुर्सत नहीं

शिवपुरी जिले में स्वास्थ्य सेवाओं के हाल बेहाल है। डिस्पेंसरीज से लेकर अस्पतालों में हालात यह हैं कि लोग सिसक रहे हैं, बीमार को इलाज नहीं मिल रहा और इनका दर्द सुनने वाला कोई नहीं है। यहां शिवपुरी के स्वास्थ्य विभाग में व्यवस्थाओं को देखने परखने की फुर्सत किसी को नजर नहीं आ रही। लोग परेशान हैं, स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह चारों खाने चित दिखाई दे रही हैं। जहां लोगों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं ही पहुंच से बाहर होती जा रही हों वहां किस व्यवस्था का ढोल पीटा जा सकता है?मेडिकल कॉलेज षड्यंत्र और भ्रष्टाचार का केंद्र बना हुआ है। जिला चिकित्सालय में लोगों से आए दिन हो रही पैसों की नोचातूपी ने बड़े विकट हालात खड़े कर दिए हैं। यहां चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह से धंधा बन कर रह गई है। नियम विरुद्ध चल रहे तमाम जांच केंद्रों की जांच कौन करे जब सारे कुएं में ही भांग पड़ी है।

जिला चिकित्सालय के अधिकांश चिकित्सकों से लेकर मेडिकल कॉलेज में पदस्थ हुए तमाम विशेषज्ञ अपनी विशेषज्ञता सरकारी पगार के एवज में आम मरीज को उपलब्ध कराने के बजाए अपने अपने निजी क्लीनिक और स्वास्थ्य संस्थान खोलकर उनसे मोटी रकम वसूली के बदले में उपलब्ध करा रहे हैं। जिले की 17 लाख से अधिक की आबादी के लिए जिला चिकित्सालय को जिले भर के मरीजों की उम्मीद का एकमात्र केंद्र कहा जाए तो गलत ना होगा। वहीं श्योपुर, गुना, अशोकनगर और शिवपुरी जैसे जिलों के लिए मेडिकल कॉलेज के नाम पर शिवपुरी मेडिकल कॉलेज ही उपलब्ध है। जहां इन जिलों से रेफर होकर मरीज आते हैं। कोरोना काल में 2 महीने के भीतर 1 सैकड़ा से अधिक मरीजों को निगल चुके मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाएं देखने परखने की किसी को फुर्सत नहीं। यहां मेडिकल कालेज में फर्जी नियुक्तियों से लेकर अपात्रों को प्रमोशन तक के मुद्दे पर किसी जनप्रतिनिधि के मुंह से बोल नहीं फूट रहे। नीचे से लेकर ऊपर तक बहुत बड़ा रैकेट स्वास्थ्य विभाग में सक्रिय है जिसमें बाबू से लेकर राजधानी स्तर के आईएएस अधिकारियों तक की भूमिका पर भी अब उंगलियां उठना शुरू हो गई हैं।सबकी नजर सरकारी बजट पर है ऐसे में कतिपय डाक्टर्स निजी संस्थानों से मिलकर आयुष्मान को पलीता लगाने में सहायक बन रहे हैं। जिले में आयुष्मान योजना का दोहन चंद अधिकारियों और स्वास्थ्य विभाग के माफियाओं ने किस कदर किया है, इसकी परतें यदि खुलना शुरू हुई तो तमाम सारे चेहरे हवालात के अंदर होंगे। आयुष्मान में जबर्दस्त फर्जीवाड़ा सामने आया है।

सरकारी अस्पताल में सक्रिय निजी अस्पतालों के दलाल

सरकारी अस्पताल और मेडिकल कालेज में आने वाले मरीजों के साथ प्रबंधन का हिकारत भरा व्यवहार देखते ही बनता है। स्वास्थ्य संस्थानों में सरकारी दलाल सक्रिय हैं, जो मरीजों को बरगला कर कतिपय चिन्हित स्वास्थ्य संस्थानों पर ले जाते हैं, और वहां इसी जिला चिकित्सालय एवं मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर ऑन पेमेंट उस मरीज को ट्रीटमेंट देते हैं जिस ट्रीटमेंट की चाहत में जिला अस्पताल अथवा मेडिकल कॉलेज पहुंचता है। मरता क्या न करता की तर्ज पर किसी तरह अपने मरीज को बचाना उसकी प्राथमिकता होती है, ऐसे में यहां यह नोचातूपी वार्ड बाय से लेकर ऑपरेशन थिएटर की टेबल तक काम करने वाले कई चेहरे करते देखे जा सकते हैं। अस्पताल में इंडोर पेशेंट्स के साथ हर स्तर पर वसूली की जा रही है। चिकित्सक भी यहां उन मरीजों को विशेष तवज्जो देते हैं जो पहले इनके घर अथवा उनके निजी क्लिनिक्स की चौखट पर बैठ दक्षिणा चढ़ा आते हैं।मरीजों और उनके परिजनों को क्या कुछ मुसीबत कूटना पड़ रही है, इसका हाल उनकी जुबानी सुना जाए तो कलेजा दहल जाएगा लेकिन दिक्कत यह है कि नेताओं को यह सब सुनने समझने की फुर्सत नहीं और वह इस तरफ ध्यान देना भी नहीं चाहते। और तो और अपने आपको स्वास्थ्य मंत्री का खास बताने वाले दलालों की भी यहां अच्छी खासी तादाद है।

ड्यूटी अवर्स में यहां सरकारी डॉक्टर मेडिकल कॉलेज अथवा जिला अस्पताल से नदारद होकर निजी स्वास्थ्य संस्थानों में किस करते देखे जा सकते हैं, जहां इनके नाम चेंबर तक आवंटित हैं यह सब देखने के लिए कलेक्टर से लेकर मिनिस्टर तक किसी पर कोई समय नहीं है। नेतागिरी इस हद तक हावी है कि स्वास्थ्य विभाग के बाबू सीएमएचओ तक पर पूरी तरह से शिकंजा कसे दिखाई देते हैं।

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Aarav Kanha
Aarav Kanha
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