सिंधिया फैक्टर से मुक्त कांग्रेस में भी सत्ता प्रायोजित फूटन
जातिगत राजनीति भी उफान पर
शिवपुरी जिले में राजनैतिक घटनाक्रम जिस तेजी से घूम रहा है उससे यह प्रतीत हो रहा है कि आने वाला विधानसभा चुनाव और उसके बाद का समय कड़ी चुनौतियों से भरपूर रहने वाला है। न केवल राजनीतिक दलों के लिए बल्कि प्रशासन के लिए भी यह चुनाव काफी मुश्किल भरा साबित होता दिखाई दे रहा है। यहां आदर्श चुनाव आचार संहिता इंपोज हो चुकी है मात्र 11 दिन बाद 17 को चुनाव है, आगामी चुनावी परिदृश्य क्या कुछ होगा कह पाना अभी संभव नहीं है।
सियासत का नया ध्रुवीकरण तय
बात करें राजनीतिक दलों की तो कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी टिकट घोषणा के साथ ही भीतर दबा हुआ असंतोष दोनों ही दलों में उभर कर सतह पर सामने आ चुका है। फर्क इतना है कि कांग्रेस में यह असंतोष भाजपा की तुलना में कम है। चुनावों की जो वर्तमान तस्वीर दिखाई दे रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले कल में दोनों ही दलों में पालिटिक्स का नया पोलराईजेशन होना तय है।
कांग्रेस पहले ही सिंधिया विहीन हो चुकी है जबकि भाजपा में यशोधरा राजे के चुनावी परिदृश्य से बाहर होने के बाद यहां की स्थानीय राजनीति में उनका खेमा नए ध्रुव की तलाश में जुट गया है, अब यह खेमा देवेन्द्र जैन के बैनर तले फील्ड तलाश रहा है। सिंधिया समर्थकों और मूल भाजपाईयों के बीच गुटीय लकीर यथावत खिंची हुई है जो चुनावी नतीजों के ऊपर निर्भर करेगी कि यह खाई पटनी है या गहरी होनी है। भाजपा में पांचों सीटों पर यह असंतोष पार्टी के उम्मीदवारों को चुनौतियोंं का अम्बार खड़ा कर रहा है।
आज की स्थिति में सिंधिया समर्थक भाजपाईयों का बड़ा वर्ग उन सीटों से किनारा कर चुका है जिन पर मूल भाजपाईयों को टिकट दिया गया है यही स्थिति उन सीटों पर मूल भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की दिखाई दे रही है जहां जहां सिंधिया समर्थकों को पार्टी ने टिकट दिया। अनिश्चितता का वातावरण प्रदेश स्तर पर है। ऐसे में इनको यहां भाजपा में कोई ठौर ठिया नजर नहीं आ रहा जो कुछ थोड़ा आधार रखते थे वे सिंधिया समर्थक नेता पहले ही कांग्रेस में खिसक लिए।
भाजपा में सिंधिया समर्थकों को मिली तबज्जो और मूल नेताओं और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा ने भाजपा के कॉडर में भारी असंतोष घोल रखा है जो अब चुनावी दौर में भाजपा के गले की फांस बन रहा है। कांग्रेस की जहां तक बात है तो वहां सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में चले जाने के बाद से कम से कम गुटीय स्थिति पूरी तरह से समाप्त हो गई है। लेकिन यहां एक नया संकट उन सिंधिया समर्थकों और कुछ भाजपा नेताओं के कांग्रेस प्रवेश ने पैदा कर दिया है जो आए थे टिकट की मंशा से मगर जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे या तो घर बैठ कर कांग्रेस की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं अथवा फिर खुलकर कांग्रेस संगठन को धता बता कर भाजपा के चुनाव प्रचार में जुटे हैं जैसे जितेन्द्र जैन गोटू। कुछ ऐसे भी रंग बदल गए हैं जिन्हें कांग्रेस में आए एक माह भी नहीं हुआ और वे पुन: र्मूसकों भव: की तर्ज पर डकराते हुए सिंधिया के सामने राते पीटते दिखाई दे रहे हैं। यहां कई दावेदार वाली स्थिति ने हालत यह कर दी है कि ये दावेदार अधिकृत प्रत्याशियोंं के समर्थन की बजाए बहाने ओढ़ कर घर बैठ गए हैं कुछ जरुर साथ दे रहे हैं क्योंकि अब इनके पास कोई विकल्प नहीं। कुल मिलाकर राजनीति में नया ध्रुवीकरण इस चुनाव में दिख रहा है।