पोस्टर से बाहर नहीं आएंगे तो क्या हुआ, मण्डली बनाएगी माहौल
सुना है ऊपर से साफ संकेत मिल गया कि जो पोस्टर में दिखाई दे रहे हैं वे पोस्टर से निकल कर खुद अब फील्ड में नहीं दिखाई देने वाले। वैसे देखें तो जो मैदान में डटे हैं, उन्होंने भी पोस्टर वालों का चुनावों में कब कब साथ दिया? अब आप समझ सकते हैं कि ऊंट को किस करवट बिठाना है। खबर यह निकल कर सामने आ रही है कि अब चुनिन्दा पार्षद मण्डली प्रथम नागरिक की अगुआई में चुनावी पत्ते फिट करने के लिए वार्डों में उतरेगी। इनके तेवर किस तरह का माहौल बनाते हैं यह किसी से दबा छुपा नहीं, सो अब ग्वालियर से मिले संकेतों के बाद माहौल बनता नजर आए तो अपने राम को भी बताना, बस यह मत पूछना कि माहौल किस टाईप से बनाना है क्योंकि ये अन्दर की बात है…
चुनावी बटौना की तैयारी
चुनाव हों और चुनावी बटौना का जिक्र न हो तो सब बेकार है। मौसम दीवाली का है सो इन दिनों तो बटौना बांटने का बहाना भी है। खबर यह निकल कर सामने आ रही है कि इस बार मिठाई के डब्बों के मार्फत घर घर लक्ष्मी बरसेगी, इसका रुट चार्ट तैयार कर लिया गया है। गोदाम भरे पड़े हैं सौगातों से, न मानो तो देख लो। अपने राम का कहना तो यह है कि बटौंना बंटे तो खूब लो जो बांटे उससे लो, मगर बदले में जमीर मत बेच देना, क्योंकि मामला पूरे पांच साल का है, अन्यथा बाद में रोना रोने से कुछ भी हासिल होने से रहा। इन दिनों चुनावी भण्डारे भी हर तरफ चल रहे है। कहीं साड़ी कहीं गाड़ी के चर्चे भी इन दिनों कान पका रहे हैं।
नेताजी को क्या औरी…गई भैंस पानी में
पोहरी की जनता को क्या औरी कि वह बात बात पर माननीय की फिरकी ले रही है। जहां जा रहे हैं वहां इन्हें इनके बांके बोल इस कदर से परेशान कर रहे हैं कि नेताजी सिर घुन रहे हैं, और उस घड़ी को कोस रहे हैंं जिस घड़ी चुनावी निर्णय लिया। इनके कहीं आडियो वायरल हो रहे हैं तो कहीं वीडियो कमाल दिखा रहे हैं। और तो और जिन लोगों को मां बहन के अलंकारों से माननीय ने अपने पद की हनक में कभी नवासा वे तो इनको देख कर ऐसे विदक रहे हैं जैसे लाल कपड़े को देख कर सांड़ बिदकता है। इसीलिए कहते हैंं कि अपने अच्छे वक्त में सबसे ऐसा व्यवहार करो कि जब वह लौट कर आए तो आपको पछताना न पड़े। वैसे इस बार तो लगता है कि गई भैंस पानी में….
शर्मीले से आया नहीं गया, गर्मीले से बुलाया नहीं गया
कांग्रेस के कुछ टिकटार्थी जिन्हें टिकट नहीं मिला उनमें से कुछ तो रुसिया कर ऐसे घर बैठे हैं जैसे दूल्हा रुसता है। इनकी तमन्ना है कि इन्हें मनाया जाए मगर शर्मीले नेताजी को गर्मीले उम्मीदवार यह कह कर मनाने से इंकार कर चुके हैं कि वे यहां किसी को साधने नहीं आए और वे सीधे जनता के साथ रुबरु हो रहे हैं। अब जब चुनाव में चंद रोज बचे हैं सो घर बैठे नेताओं को भी कुलबुलाहट होने लगी है 17 के बाद उनकी गिनती कहां होगी यह बताने से ज्यादा समझने की जरुरत है। इसलिए अब वे मुंह दिखाई का प्लान बना रहे हैं, मगर इनकी इस प्लानिंग से कुछ खास हासिल होगा इसकी उम्मीद जरा कम है।
कोलारस में हो गया खेला…
महाराज विरोधी उम्मीदवार को अपने दिल में जगह दे गए, और समर्थकोंं ने साथ छोड़ दिया। रह गई जाति तो जाति के साथ मचेवा दल के सदस्य भी तितर बितर हो रहे हैं, इन परिस्थितियों ने यह जता दिया है कि इस बार खेला न हो जाए। वैसे एक ही परिवार पर प्यार दुलार लुटा लुटा का महाराज भी अपना मूल गवां बैठे सो इस बार मामला गड़बड़ है। हालांकि दूसरे पक्ष के नेताजी से अपने राम का कहना तो यही है कि वे अपने वीर के सरपट्टे पर लगाम लगाऐं ताकि विदकन की वही स्थिति यहां भी न बन जाए जो सामने वाले खेमें में बन रही है।