Election Special – ट्रिपल इंजन की सरकार और समस्याओं का अंबार बना शिवपुरी में चुनावी मुद्दा

चार सीटों पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में, पोहरी में त्रिकोणीय संघर्ष

ताजा सी फोर सर्वे रिपोर्ट ने सत्ताधारी दल की टेंशन बढ़ाई

18 साल सत्ता में रही भारतीय जनता पार्टी को इस समय प्रदेश में जिस सबसे बड़ी कठिनाई से जूझना पड़ रहा है वह है धरातल पर विकास कार्यों को गिनाना। शिवपुरी जिले में इस समय चुनावी समर अब रंगत पर आता जा रहा है।

एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को कम करने के लिए कुछ सीटों पर प्रत्याशी बदले गए हैं। शिवपुरी विधानसभा सीट से लगातार जीत हासिल विधायक और मंत्री बनी रहीं यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव न लड़ने के फैसले के बाद पार्टी ने पूर्व विधायक देवेंद्र जैन को मैदान में उतारा है। कांग्रेस पार्टी ने पिछोर विधायक केपी सिंह को शिवपुरी से चुनाव मैदान में उतारा है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के शिवपुरी से चुनाव लड़ने की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए केपी सिंह को शिवपुरी विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन अब सिंधिया मैदान में नहीं उतर रहे।

कांग्रेस प्रत्याशी विधायक केपी सिंह की राजनैतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो विगत 1993 से लगातार वे कांग्रेस विधायक हैं, कांग्रेस सरकार में मंत्री भी रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र जैन पत्तेवाले 1993 में शिवपुरी विधायक रह चुके हैं। वे शिवपुरी से 2004 में नपा अध्यक्ष का चुनाव लड़े मगर निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहन सेंगर से पराजित हुए। 2008 में वे मात्र 238 मतों से चुनाव जीते और कोलारस विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे, 2013 में वे रामसिंह यादव से 24 हजार 953 मतो से चुनाव हारे फिर कोलारस की राजनीति से रुखसत होकर शिवपुरी से ताल ठोक रहे हैं। पिछोर क्षेत्र के मतदाताओं के बीच पूरे 5 साल हमेशा सम्पर्क में बने रहने के चलते ही केपी सिंह विगत 30 साल से सक्रिय राजनीति में बने हुए हैं। अब ये दोनों एक दूसरे के सामने हैं। चुनाव प्रचार के दौरान देवेंद्र जैन पत्ते वाले केपी सिंह पर व्यक्तिगत हमला बोलने से नहीं चूक रहे। इसके विपरीत केपी सिंह ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा प्रत्याशी का ना तो नाम लिया है और ना ही उन्होंने किसी तरह के व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप लगाने में कोई रुचि दिखाई है।

पार्टियों के प्रचार की बात करें तो अभी तक भारतीय जनता पार्टी नगरीय क्षेत्र में जातिगत समीकरण साध कर वैश्य समुदाय के एकीकरण में जुटी हुई है जबकि कांग्रेस प्रत्याशी ने ग्रामीण सेक्टर में संपर्क अभियान का दौर पूरा कर लिया है और एक नवंबर से 10 नवंबर तक उनके प्रचार अभियान का फोकस नगरीय क्षेत्र में होगा। उनके समर्थन में भी कई समाज और संगठन लामबंद होने लगे हैं। जिले में भाजपा के स्टार प्रचारक के तौर पर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पोहरी और कोलारस में कार्यकर्ता सम्मेलन के बहाने प्रचार अभियान में उतर चुके हैं जबकि जिले की पांचों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी खुद के बूते प्रचार में जुटे हुए हैं।

शिवपुरी में मुद्दों की भरमार

मुद्दों की बात करें तो शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगारी जहां सबसे बड़ा मुद्दा है, वहीं बिजली पानी, सड़क और सीवर जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव बर्निंग इशू बना हुआ है। भाजपा इस अवरुद्ध विकास के लिए किसी अन्य दल को दोषी बताने से रही क्योंकि लगातार क्रम में भाजपा शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में काबिज रही है। नगर पालिका से लेकर जिला पंचायत, विधानसभा और संसद तक भाजपा की ट्रिपल इंजन सरकार के बावजूद विकास में शिवपुरी का पिछड़ापन, बेरोजगारी की समस्या और बिजली पानी सड़क जैसे मूलभूत सुविधाओं का अभाव निश्चित तौर पर पार्टी की परेशानी को इस चुनावी दौर में बढ़ा रहा है।

ताजा सर्वे रिपोर्ट ने बढ़ाई टैंशन

प्रदेश को लेकर जी न्यूज सी फोर का एमपी-सीजी चुनाव सर्वे सामने आया है जिसने भाजपा की टैंशन को और बढ़ा दिया है। प्रदेश में 17 नवंबर को एक ही फेज में वोटिंग है, ऐसे में चुनाव से ठीक पहले सामने आए इस ताजा सर्वे में देखें तो प्रदेश की 230 सीट में पर जी न्यूज़ सी -4 सर्वे के अनुसार कांग्रेस को बम्पर सीट्स मिलती दिख रही हैं। कांग्रेस को 132 से 146 सीट आ सकती हैं जबकि भाजपा को 84 से 98 सीट मिलती दिख रही हैं, वहीं अन्य के खाते में भी पांच सीट्स आने के आसार जताए गए हैं। इस सर्वे के अनुसार मध्य प्रदेश चुनाव में वोटिंग परसेंट भी कांग्रेस के पक्ष में ज्यादा दिख रहा है। कांग्रेस को 46 फीसदी वोट प्रतिशत मिलना बताया गया है जबकि सत्ताधारी भाजपा 43 फीसदी वोट परसेंटेज के साथ दूसरे नंबर पर है। निर्दलीय और अन्य को 11 प्रतिशत वोट मिलता दिख रहा है।

क्या रहे थे 2018 में चुनावी हालात?

साल 2018 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखें तो उसमें भारतीय जनता पार्टी को 56 सीटों को नुकसान के साथ 109 सीट मिली थी जबकि कांग्रेस को 114 सीट और बीएसपी को दो सीट मिली थीं। उस साल कांग्रेस करीब 15 सालों के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और डेढ़ साल सत्ता में रही, हालांकि बाद में हुए उलट फेर के चलते भाजपा की सत्ता में वापसी हुई थी जिसमें कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बड़ा रोल निभाया था। इस समय जिले की 5 सीटों पर जो हालात हैं उसके तहत केवल पोहरी में त्रिकोणीय मुकाबला है जबकि अन्य चार सीटों पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है। अन्य दल मैदान में है लेकिन वे टक्कर में नहीं कहे जा सकते।

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Rahil Sharma
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