चुनावी मौसम में जिनको टिकट मिला वे कैम्पेनिंग में जुट गए हैं, जिनको नहीं मिला वे 31 तक अपने अगले कदम के लिए चिंतन में जुट गए हैं। केवल समाज के सहारे राजनीति में एण्ट्री करने वाले खाली हाथ रहे धुरंधरों को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। अगर समाजों की ताकत पर ही विजय शंख फूंकना था तो निर्दलीय का विकल्प अब भी बचा है मगर ऐसा दुस्साहस कोई दिखाऐगा इसकी सम्भावना न के बराबर है। फेसबुक पर रोज चुनावी दूल्हा बनने वालों की हालत यह है कि अब वे इस जुगत में हैं कि कोई उम्मीदवार उन्हें अपने ही चुनाव अभियान में कोई जिम्मेदारी सौंप दे मगर इनको बुलावा तक नहीं आ रहा। कुछ बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनने चल पड़े हैं और लगे हैं आगे पीछे डोलने। कुल मिलाकर यह चुनाव कईयों की कलई खोल गया, बचे खुचे रह गए हैं उनकी हैसियत का अंदाजा भी आने वाले कल में हो जाएगा। अपने राम का कहना तो इनकी इस हालत पर यही है कि हाथ न मुठी खुनखुना उठी…
चल चल चल मेरे हाथी, मेरे साथी…
कहते हैं मुर्दा कौम इंतजार करती हैं और जिंदा कौम आंदोलन करती हैं। इंतजार करने वालों को कभी कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए पोहरी में पहले कॉंग्रेस से टिकट की आस लगाई और जब कॉंग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो काकाजी (पूर्व विधायक ) को भाजपा से टिकट का इंतजार किया जब खुद के बाद काकाजी भी खाली हाथ दिखे तो बछौरा हाथी पर जा चढ़े। अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है कहीं ऊंट किसी भी करबट बैठता रहे पोहरी में तो हाथी की करबट मंत्री जी की नींद ऊड़ा रही है। हाथी के पीछे ककाजी की शह सामने आ रही है और यहां भाजपा दो खेमों में बंट गया है एक महाराज भाजपा और दूसरी नाराज भाजपा।
फ्री हैण्ड हुई तिगड़ी
टिकटों के समीकरण कुछ ऐसे बने कि आदर्श नगर वाले नेता जी, पोहरी वाले नेता जी से लेकर लुहारपुरा वाले टाईगर तक इस समय फ्री हैण्ड हो गए हैं, इनकी दुविधा यह है कि आखिर जाएं तो कहां जाएं, इसलिए रुसे रुसे से फिर रहे हैं। इनको अब कोई विकल्प भी नहीं बचा सो ये अपनी नई भूमिका की तलाश में जुटे हैं। खुद का फैलारा समेट नहीं पाए दूसरों का फैलारा जरुर फैला चुके हैं। अब इन्हें सामाजिक जिम्मेदारी सौंपी है देखना यह है कि समाज में क्या करतब दिखाते हैं, अपने राम का कहना तो यही है कि तेल देखिए और तेल की धार देखिए जो होगा अच्छा ही होगा।
गुरु पड़े कुछ और है, गरज गए कछु और
जब तक शिवपुरी में श्रीमंत की सत्ता रही तब तक श्रीमंत के किसी कार्यक्रम में कभी नजर नहीं आने वाले सेठ जी, अब जनसम्पर्क कार्यालय की चौखट चढ़कर श्रद्धा भाव से आशीर्वाद मांग रहे हैं। अब इन्हें भवानी का आशीर्वाद किस हद तक मिलता है, यह तो नहीं पता लेकिन नेताजी के इस रोल पर अपने राम का कहना तो यही है कि गरज पड़े कछु और है गरज गए कछु और….
खेल पंडा खेल तोहे आ गई भवानी
जब तक प्रत्याशियों की सूचिया जारी नहीं हुई तब तक पंडा जी को खूब भवानी आई, ऐसा लगा की टिकट तो पंडित जी की जेब में है। अब जब से सूची जारी हुई है और चुनावी पांचांग में पंडित जी का नाम कहीं नजर नहीं आया, तब से उनके सिर में ऐसी भवानी भरी हुई है कि चुनाव की बात करते ही चिनमिनी मच रही है।