शिवपुरी के सहरिया बाहुल्य गांव में आदिवासी परिवारों की हालत और नाजुक होती जा रही है। आंगनबाड़ियों में भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है। यहां के कोट्का गाँव को लें या मोहराई को यहां लगभग आधा दर्जन से अधिक कम वजन के बच्चे बीमारियों से जूझ रहे हैं। कहीं कोई सुनवाई नहीं। कागजों में जागरूकता अभियान जरूर अपनी खानापूर्ति करते दिखाई पड़ जाते हैं। शिवपुरी के जंगली इलाकों में बसे सहरिया आदिवासियों को ना तो रोजगार गारंटी योजना में काम मिल रहे हैंऔर ना ही कई महिलाओं को तीन माह से अधिक समय से पोषण आहार की राशि ही प्राप्त हो सकी है। नतीजा भुखमरी के हालात पैदा होते जा रहे हैं। सहरिया क्रांति ने कुपोषण को लेकर सरकार और विपक्ष की भूमिका पर हमला बोला है ।
विदित हो पिछले वर्ष टेक होम और पोषण आहार पर कैग रिपोर्ट के बाद पूरे प्रदेश में हो-हल्ला मचा। विपक्ष हमलावर हुआ , अब शांत भी हो गया, मगर समस्या जस की तस है । सरकार रिपोर्ट को अंतिम सत्य न मानकर जांच की बात करती रही है। उन्हें अपने मातहतों की कारस्तानियों को जांचना है। इतना तो तय है कि भ्रष्टाचार का दैत्य हमारे सहरिया आदिवासी नौनिहालों और महिलाओं का पोषण आहार डकार गया। सरकारों का ही दोष है कि वे सुचारू तंत्र नहीं बना पाई हैं। इस कारण तंत्र में नासूर की तरह फैल चुका भ्रष्टाचार सब मटियामेट कर रहा है। यह रिपोर्ट चेतावनी भी है, समय रहते संभल जाइए, क्योंकि सरकार-जनता के बीच भ्रष्टाचारी तंत्र रूपी परजीवी बेल ‘विश्वास’ चट करने पर आमादा है।
शिवपुरी समेत धार, झाबुआ, रीवा, सतना, सागर और मंडला आठ जिलों की सैंपल रिपोर्ट ने 100 करोड़ से ज्यादा के घोटाले के संकेत दिए। यदि सभी जिलों की वास्तविकता का आकलन किया जाए तो और भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। क्योंकि पांच साल में जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। एक –एक जिले में हर साल 3 करोड़ रुपए से अधिक राशि पोषण आहार पर खर्च हो रही है, लेकिन यह किस पेट में पहुंच रहा है, यह भी जांच का विषय है। ऐसी वजहों से प्रदेश के 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, जिन्हें भरपेट भोजन के लिए भ्रष्ट तंत्र से भी जूझना होगा।मध्यप्रदेश में उजागर हुई यह कमी भारत को 2030 तक कुपोषण मुक्त करने के अभियान में बड़ी बाधा बन सकती है। सहरिया क्रांति के अध्यक्ष अजय आदिवासी कहते हैं कि सरकार को इसके लिए कमर कसनी होगी, ताकि लक्ष्य भी पूरा हो और फंड का भी सदुपयोग हो। कैग की रिपोर्ट में जो सबसे चौंकाने वाला है, वो यह कि परिवहन में घोटाला हुआ, स्कूल छोड़ चुके बच्चों को राशन बांटना दिखा दिया। और तो और सिर्फ कागजों में पोषण आहार भेजकर भ्रष्टाचारी जमकर डकारें ले रहे हैं।
सहरिया क्रांति के सामाजिक कार्यकर्ता कल्याण आदिवासी कहते हैं कि जब तंत्र को भ्रष्टाचार का रोग लग जाए तो लोगों को कुपोषित होने से नहीं रोका जा सकता है। सरकार की इच्छाशक्ति के अभाव के चलते लापरवाह और लेतलाली का शिकार तंत्र अब निरंकुश हो चुका है। सरकार को ही इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे। ऊपर से नीचे तक समझाइश देनी होगी कि जनता के पोषण पर डाका डाला तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे। औतार आदिवासी कहते हैं कि शिवपुरी में कुपोषण की स्थिति गंभीर रही है, बच्चों का जीवन कुपोषण के कारण संकट में रहा है, लेकिन शासन व्यवस्था बच्चों के प्रति जवाबदेय और संवेदनशील नहीं है। 18 सालों से यह मांग की जा रही है कि राज्य में पोषण आहार के कार्यक्रम के लिए पर्याप्त बजट आवंटित किया जाना चाहिए, लेकिन जिस वक्त 12-15 ग्राम प्रोटीन और 500 कैलोरी के लिए कम से कम 16 रुपये की आवश्यकता है, वहां यह आवंटन केवल 8 रुपये है। मध्यप्रदेश में चार बार समाज के सबसे प्रभावशाली समूहों के दबाव में पोषण आहार कार्यक्रम में अण्डों को शामिल करने से रोका गया, लेकिन पोषण आहार में जब-जब भ्रष्टाचार की बात उभरी, तब-तब शाकाहारी राजनीतिक समुदाय मौन हो गया. कितना अजब विरोधाभास है कि सबसे उच्चतम नैतिक सिद्धांतों का पालन करने वाले समुदायों ने बच्चों की कुपोषण से मृत्यु और पोषण आहार में भ्रष्टाचार पर एक बार भी कोई प्रश्न नहीं पूछा!
शिवपुरी में पोषण आहार घोटाले को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
• आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की निगरानी कड़ी की जानी चाहिए।
• पोषण आहार की आपूर्ति और वितरण को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
• पोषण आहार की गुणवत्ता की जांच की जानी चाहिए।
• महिला बाल विकास विभाग को मजबूत बनाया जाना चाहिए।
• सरकार को इस मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
शिवपुरी में पोषण आहार घोटाला एक गंभीर मुद्दा है। इस घोटाले से गरीबों का पोषण डकार जा रहा है। इस समस्या को दूर करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना होगा।