-इस बार सिंधिया के हस्तक्षेप से मुक्त रहेगी काँग्रेस
-वीरेन्द्र के नाम पर एक ओर विरोध तो दूसरी ओर पर्दे के पीछे का समर्थन भी
शिवपुरी विधानसभा का चुनावी मसला बड़ा दिलचस्प होता दिखाई दे रहा है। यहां प्रत्याशी चयन को लेकर जो हलचल है वह काबिले गौर है। शिवपुरी से विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी की काँग्रेस के ही टिकटार्थियों द्वारा की जा रही खिलाफत के अपने मायने निकाले जा रहे हैं।सूत्रों की माने तो विधायक रघुवंशी को शिवपुरी से टिकट न मिले इसके लिए भाजपा की एक लॉबी काँग्रेस के कुछ नेताओं के सम्पर्क में है, और इस विरोध को वहां से पर्दे के पीछे से हवा दिलवाने का काम किया जा रहा है। सब कुछ बड़े ही प्रायोजित अंदाज में चल रहा है। हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा का एक बड़ा असंतुष्ट खेमा वीरेन्द्र के साथ खड़ा होने की हुंकार भर रहा है यह सब भी पर्दे के पीछे से हो रहा है।
इस बार का यह विधानसभा चुनाव कई मायनों बड़ा रोचक और नए समीकरणों के साथ होना तय है। अब से पूर्व के चुनावों में दोनों ही दलों में सिंधिया घराने का दबदबा होता था और वहीं की एनओसी के बाद क्रमश: काँग्रेस और भाजपा में प्रत्याशी फायनल हुआ करते थे, मगर बदलते वक्त के साथ सब बदल रहा है। यहां बदली हुई परिस्थितियों में ज्योतिरादित्य सिंधिया का काँग्रेस में पूरी तरह से दखल खत्म हो चुका है। 2019 को चुनाव हारने के बाद उनका खेमा यहां कमजोर पर कमजोर होता चला गया, और अब जब वे पिछले समय खुद भाजपा में जा चुके हैं तो ऐसे में काँग्रेस में अब प्रत्याशी चयन में सिंधिया के हस्तक्षेप का सवाल नहीं। जो संकेत मिले हैं उसके अनुसार काँग्रेस भाजपा के लगातार कब्जे वाली इस विधानसभा सीट पर चुनावी संघर्ष में कोई कोर कसर नहीं छोडऩे वाली, संभवत: यही कारण है कि विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को ऐन समय पर शिवपुरी से प्रत्याशी बनाए जाने की पूरी तैयारी कर ली गई है। वीरेन्द्र के नाम को इसलिए तरजीह दी जा रही है क्योंकि एक तो वे शिवपुरी विधानसभा से तीन मर्तबा चुनाव लड़ चुके हैं। नतीजतन ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में उनको पहचान का संकट नहीं है दूसरे काँग्रेस उनके माध्यम से सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र में हमलावर होना चाहती है, तीसरा वे सिंधिया विरोध के चलते ही भाजपा से विधायक होने के बावजूद पार्टी छोड़ कर आए हैं। बताया जाता है कि इस चुनावी तैयारी की स्क्रिप्ट तो साल भर पहले ही लिखी जा चुकी थी मगर ऐन समय पर अब इसे प्ले किया जाना शुरु हुआ है। हालांकि टिकट अभी मिली नहीं ऐसे में कुछ भी कहना जरा जल्दबाजी होगी मगर जिस तरह से तमाम कोंग्रेसी विपक्ष की खिलाफत की रणनीति पर काम करने के बजाए वीरेन्द्र को टिकट की खिलाफत पर काम कर रहे हैं उससे लगता है कि वीरेन्द्र के टिकट का संकेत उन्हे मिल चुका है, फिर भी उनके इस विरोध के क्या कुछ सार्थक परिणाम सामने आएंगे यह वक्त तय करेगा।